ज्ञानवापी विवाद: हिंदू और मुस्लिम पक्ष की क्या क्या हैं याचिकाएं? | varanasi gyanvapi case what are the pleas of hindu and muslim side in the court


ज्ञानव्यापी मस्जिद विवाद
ज्ञानवापी विवाद पर मंगलवार को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष की याचिकाओं पर अपना फैसला सुनाया. अदालत ने मुस्लिम पक्ष की सभी 5 याचिकाओं को खारिज कर दिया है. याचिकाएं अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद कमेटी और उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने दायर की थीं. अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद कमेटी वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर से सटी ज्ञानवापी मस्जिद का प्रबंधन करती है. कोर्ट ने माना है कि यहां प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट लागू नहीं होता. अदालत ने 1991 के केस के ट्रायल को भी मंजूरी दे दी है.
बता दें कि मामले में हिंदू और मुस्लिम पक्ष ने कोर्ट ने एक नहीं, कई याचिकाएं दायर की हैं. मुस्लिम पक्ष का कहना है कि मस्जिद काफी पुरानी है. वो शिवलिंग के अस्तित्व को कथित बताता है. मुस्लिम प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 लागू करने की मांग कर रहा है. इस कानून में कहा गया है कि किसी भी धर्म के पूजा स्थल का जो अस्तित्व 15 अगस्त 1947 के दिन था, वही बाद में भी रहेगा. उसका कहना है कि प्रॉपर्टी वक्फ की और वक्फ में दर्ज है.
हिंदू पक्ष की क्या मांग है?
उधर हिंदू पक्ष मंदिर के सबूत होने की बात कहता है. वो वजूखाने में शिवलिंग होने का दावा करता है. हिंदू पक्ष ज्ञानवापी का पूरा परिसर सौंपने की मांग कर रहा है. उसकी अर्जी है कि मुस्लिमों की एंट्री परिसर में बंद हो.हिंदू पक्ष ने उस जगह पर मंदिर बहाल करने की मांग की है जहां मौजूदा समय में ज्ञानवापी मस्जिद स्थित है. हिंदू पक्ष के मुताबिक, ज्ञानवापी मस्जिद, मंदिर का हिस्सा है.
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क्यों ज्ञानव्यापी मामले में लागू नहीं हुआ वर्कशिप एक्ट?
मुस्लिम पक्षों, जिनमें उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ और यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड भी शामिल थे, उनका मुख्य तर्क यह था कि हिंदू पक्षों का मुकदमा पूजा स्थल अधिनियम (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 द्वारा वर्जित था. हाई कोर्ट ने इस दलील को खारिज कर दिया है.
हिंदू पक्ष ने कथित तौर पर इस आधार पर अपने 1991 के मुकदमे का बचाव किया था कि पूजा के अधिकर का यह विवाद पूजा स्थल अधिनियम (विशेष प्रावधान) अधिनियम से पहले का है. खास बात ये है कि काशी ज्ञानवापी विवाद से संबंधित मामलों की सुनवाई पहले जस्टिस प्रकाश पाडिया ने की थी, जो 2021 से इस मामले को देख रहे थे. हालांकि इन मामलों को इस साल अगस्त में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश प्रीतिंकर दिवाकर (सेवानिवृत्त होने के बाद) द्वारा वापस ले लिया गया और किसी अन्य एकल न्यायाधीश को स्थानांतरित कर दिया गया.