किस दिशा में जा रही जयंत की सियासत, क्या है JGD का विनिंग फॉर्मूला? | Jayant Chaudhary RLD jat gurjar dalit plan in west up INDIA alliance bjp sp


जयंत चौधरी
लोकसभा चुनाव की सियासी सरगर्मी के साथ ही आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी ने विपक्षी इंडिया गठबंधन का साथ छोड़कर बीजेपी नेतृत्व वाले एनडीए के साथ हाथ मिला लिया है. सीट शेयरिंग में आरएलडी को मिली दो लोकसभा सीटों पर जयंत ने अपने उम्मीदवारों के नाम का ऐलान कर दिया है. बागपत से राजकुमार सांगवान और बिजनौर से चंदन चौहान को प्रत्याशी बनाया है. इसके अलावा योगेश चौधरी को विधान परिषद का प्रत्याशी बनाया है जबकि यूपी कैबिनेट में आरएलडी कोटे से अनिल कुमार को मंत्री बनाए जाने की चर्चा है.
एनडीए खेमे में आने के बाद जयंत चौधरी इस बात को समझ रहे हैं कि पश्चिमी यूपी का समीकरण बदल गया है. जयंत भी बाखूबी समझ रहे हैं, जिसके चलते पश्चिमी यूपी में ‘खतौली’ मॉडल को बनाए रखने की कवायद में है. मुजफ्फरनगर की खतौली विधानसभा सीट पर आरएलडी ने गुर्जर प्रत्याशी उतारकर जाट-गुर्जर-दलित और मुस्लिम समीकरण बनाया था. बीजेपी के साथ गठबंधन होने के चलते माना जा रहा है कि मुस्लिम समुदाय आरएलडी के साथ जुड़े रहना मुश्किल है. इसीलिए जयंत चौधरी ने पश्चिमी यूपी में जाट-गुर्जर के साथ दलित समुदाय को भी जोड़े रखने का JGD प्लान बनाया है?
राजुकमार सांगवान पर खेला दांव
जयंत चौधरी ने बागपत से राजकुमार सांगवान को प्रत्याशी बनाया है, जो जाट समुदाय से आते हैं. सांगवान को चौधरी परिवार का करीबी माना जाता है और लंबे वक्त से पार्टी से जुड़े हुए हैं. जमीनी और साफ-सुथरी छवि नेता के तौर पर उन्हें जाना जाता है. 2022 में सिवालखास से सांगवान को आरएलडी ने प्रत्याशी बनाया, लेकिन बाद में उनका टिकट काटकर सपा से आए गुलाम मोहम्मद को कैंबिडेट बना दिया था. टिकट कटने के बाद जाट समुदाय ने काफी विरोध किया था, लेकिन बाद में सांगवान ने पार्टी प्रत्याशी जिताने में भूमिका अदा करने का काम किया. मेरठ में छात्र राजनीति से अपनी पारी का आगाज करने करने वाले सांगवान को लोकसभा का टिकट देकर जयंत चौधरी ने बड़ा दांव चला है.
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चंदन चौहान को बनाया प्रत्याशी
बिजनौर लोकसभा सीट से चंदन चौहान को प्रत्याशी बनाया है, जो मीरापुर विधानसभा सीट से विधायक हैं. चंदन चौहान के दादा यूपी के डिप्टी सीएम रह चुके हैं तो उनके पिता संजय चौहान विधायक और सांसद रहे हैं. चंदन चौहान गुर्जर समुदाय से आते हैं और आरएलडी के युवा अध्यक्ष हैं. बिजनौर लोकसभा सीट पर उनके परिवार का अपना दबदबा है. चंदन चौहान अपने पिता के निधन के बाद सियासत में सक्रिय हुए और सपा को अपना राजनीतिक ठिकाना बनाया, लेकिन 2022 में आरएलडी का दामन थाम लिया और विधायक चुने गए. अब जयंत चौधरी ने उन्हें लोकसभा का प्रत्याशी बिजनौर से बनाया है, जहां से बसपा के मौजूदा सांसद मलूक नागर भी आरएलडी के टिकट के जुगत में थे.
योगेश चौधरी को एमएलसी टिकट
एनडीए खेमे के जाने के बाद आरएलडी को विधान परिषद की एक सीट मिली है, जहां से जयंत चौधरी ने अपने करीबी नेता योगेश चौधरी को प्रत्याशी बनाया है. वो मथुरा इलाके से आते हैं, 2007 से आरएलडी के जुड़े हुए हैं. योगेश चौधरी मथुरा की मांट विधानसभा सीट से 2012 में चुनाव लड़े और 2017 में महज चार सौ वोटों से चुनाव हार गए थे. 2022 में चुनाव लड़ने के लिए नामांकन भी कर दिया था, लेकिन सपा के संजय लाठर के चुनावी मैदान में उतरने उन्हें पीछे हटना पड़ा. ऐसे में अब जयंत चौधरी ने उन्हें एमएलसी का प्रत्याशी बनाया. योगेश चौधरी जाट समुदाय से आते हैं. आरएलडी के वफादार नेताओं में गिने जाते हैं, जिसके चलते उन पर दांव खेला है.
योगी कैबिनेट में अनिल कुमार?
बीजेपी के साथ हाथ मिलाने का एक बड़ा फायदा आरएलडी को सत्ता में भागीदार का भी मौका मिल गया है. योगी सरकार के मंत्रीमंडल विस्तार में आरएलडी कोटे से पुरकाजी विधायक अनिल कुमार को मंत्री बनाए जाने की संभावना है. अनिल कुमार पुरकाजी से पहले चरथावल सीट से बसपा के विधायक रहे हैं. दलित समुदाय से आते हैं और आरएलडी के दलित चेहरे माने जाते हैं. अनिल कुमार मूल रूप से सहारनपुर के गांव तहारपुर के रहने वाले हैं, लेकिन सियासत मुजफ्फरनगर इलाके से करते हैं. जयंत चौधरी ने कैबिनेट का हिस्सा बनाकर सियासी संदेश देने की स्टैटेजी है, क्योंकि पश्चिमी यूपी में दलित वोटर काफी अहम और निर्णायक भूमिका में है.
जाट-गुर्जर-दलित समीकरण
जयंत चौधरी अब पश्चिमी यूपी में जाट-गुर्जर और दलित समीकरण बनाने की रणनीति पर काम कर रहे हैं. इसीलिए एनडीए खेमे में आने के बाद उन्होंने जाट समाज से आने वाले राजकुमार सांगवान को लोकसभा और योगेश चौधरी को एमएलसी का प्रत्याशी बनाया है जबकि गुर्जर समुदाय से चंदन चौहान को लोकसभा का टिकट दिया है. दलित समुदाय से आने वाले अनिल कुमार को योगी कैबिनेट में एंट्री करा रहे हैं. इस तरह से जाट-गुर्जर-दलित समीकरण को अमलीजामा पहनाने का प्लान बनाया है. जयंत चौधरी ने इसी फॉर्मूले पर खतौली उपचुनाव जीतने में कामयाब रहे थे, लेकिन अब उसमें से मुस्लिम नहीं है. आरएलडी इस बात को जान रही है कि बीजेपी के साथ जाने से मुस्लिम वोटर का उसके साथ आना मुश्किल है.
पश्चिमी यूपी का विनिंग फॉर्मूला
पश्चिमी यूपी की सियासत चार प्रमुख जातियों के इर्द-गिर्द सिमटी हुई है, जिसमें जाट, मुस्लिम, गुर्जर और दलित समुदाय है. बीजेपी के साथ आरएलडी का गठबंधन होने से मुस्लिम समुदाय जयंत चौधरी से छिटक सकते हैं, जिसके चलते ही उन्होंने जाट-गुर्जर-दलित फॉर्मूले को बना रहे हैं. पश्चिमी यूपी में इसे विनिंग फॉर्मूला माना जाता है. जाट भले ही यूपी में तीन फीसदी है, लेकिन पश्चिमी यूपी में 20 फीसदी के करीब है. 25 से 30 फीसदी दलित वोटर पश्चिमी यूपी में है. गुर्जर वोटर भले ही 2 फीसदी है, लेकिन कई सीटों पर जीतने का माददा रखते हैं. दलित समुदाय बीएसपी का कोर वोटबैंक माना जाता है, लेकिन एक के बाद एक चुनाव में मिल रही हार के चलते दलित वोटर मायावती से छिटक रहा है. इसीलिए जयंत चौधरी दलितों को साधने की कवायद में है. इस तरह जाट-गुर्जर और दलित समीकरण बनाकर जयंत चौधरी दोबारा से पश्चिमी यूपी की सियासत के किंगमेकर बनने की जुगत में है. देखना है कि इस फॉर्मूले से कितना कामयाब होते हैं?