बुलडोजर से ‘मोहब्बत’, बन गई मुसीबत; आजम खान की सियासी कहानी | Azam Khan guilty birth certificate case political story Bulldozer


सपा नेता आजम खान
सियासत से लेकर सितम तक और गुनाहों से लेकर सजा तक आजम खान दशकों से सुर्खियों का हमसाया रहे हैं. फर्जी प्रमाण-पत्र मामले में आजम, अब्दुल्ला और तंजीन फ़ातिमा को मिली 7 साल की सजा उन अनकहे ज़ुल्मों की बुनियाद की ओर इशारा करती है, जिन्हें 2012 से 2017 के बीच बेरोकटोक अंजाम दिया गया. नवाबों के बसाए रामपुर में पुलिस, प्रशासन, कानून और सियासी रसूख सबके मायने थे आजम खान.
यूं तो आज़म का सियासी इतिहास चार दशक से ज्यादा पुराना है. लेकिन जिस दौर ने आजम को सियासी हुक्मरान आजम खान बनाया, हम आपको उसी दौर की कहानी बता रहे हैं. विधायक से कैबिनेट मंत्री और अघोषित डिप्टी सीएम का रुतबा हासिल करने तक के सफर में आजम खान के रसूख ने कई बेगुनाहों को अपने बुलडोजर से रौंदा है. अखिलेश यादव भले ही कह रहे हैं कि उन्हें मुसलमान होने की सजा मिल रही है. लेकिन ये सजा दरअसल उन गुनाहों की है, जो रामपुर वालों के कांपते होठों तक कई बार आई, लेकिन अनसुनी कर दी गई.
आजम ने तूफान में गरीब पर चलवाया बुलडोजर
“बजा कहे जिसे आलम उसे बजा समझो, ज़बान-ए-ख़ल्क़ को नक़्क़ारा-ए-ख़ुदा समझो” यानी दुनिया जिसे सही कह रही है उसे सही मानो और जनता की आवाज को खुदी का आवाज मानो. रामपुर की उसी जनता के हवाले से यहां आजम के सितम की दास्तां बयां की जा रही है. साल 2014 की बात है. रामपुर में उस दिन आंधी-तूफान कहर बनकर टूट रहा था. लोग जान-माल की हिफाजत के लिए घरों में दुबके पड़े थे. गांधी समाधि से थोड़ी दूर पर जिला विद्यालय निरीक्षक यानी DIOS का पुराना दफ्तर था.
स्थानीय लोगों के मुताबिक कैबिनेट मंत्री आजम खान ने उस सरकारी दफ्तर को नगरपालिका की सरकारी जगह पर आनन-फानन में शिफ्ट करवा दिया. DIOS का नया दफ्तर जिस जमीन पर 99 साल की लीज पर अलॉट किया गया, वहां एक गरीब मुस्लिम परिवार रहता था. रामपुर के कुछ लोग उस दिन की कहानी आज भी नहीं भूले हैं.
लोग बताते हैं कि नगरपालिका की जमीन पर जो मुस्लिम परिवार रहता था, वो दूध का छोटा-मोटा कारोबार करता था. कुछ भैंसें पालकर वो परिवार गुजारा करता था. आजम ख़ान पुलिस-प्रशासन के साथ मौके पर पहुंचे. लोग बताते हैं कि 2014 की इस घटना के वक्त साधना गोस्वामी बतौर SP तैनात थीं. भारी बारिश और तूफान के बीच गरीब मुस्लिम परिवार की टीन बुलडोजर से गिरा दी गई.
तूफान में भीगते बच्चों के होंठ पड़ गए थे नीले
DIOS ऑफिस के नाम पर जिस जगह से गरीब मुस्लिम परिवार को उजाड़ा गया था, वो मंजर लोगों को अच्छी तरह याद है. स्थानीय पत्रकारों के मुताबिक आंधी बारिश में जब गरीब के घर पर बुलडोजर चल गया, तो पूरा परिवार भीगता रहा. लोग बताते हैं कि तूफान और बारिश में भीगते बच्चों के होंठ नीले पड़ गए थे. स्थानीय पत्रकारों ने बच्चों को कहीं सुरक्षित जगह शिफ्ट करने की बात कही, लेकिन आजम खान और प्रशासन दोनों ने अनसुना कर दिया.
रामपुर के लोग बताते हैं कि वो पूरी घटना दोपहर तकरीबन दो बजे की थी. आंधी-बारिश की वजह से ज्यादा लोग मौक़े पर नहीं पहुंच सके थे. हालांकि, पुलिस-प्रशासन के लोग आजम के इशारे पर कार्रवाई के लिए मौजूद थे. समाज कल्याण अधिकारी भी मौके पर थे. स्थानीय लोग बताते हैं कि उस घटना का सबसे अफसोसजनक पहलू ये है कि वो परिवार दोबारा रामपुर में किसी को नहीं दिखा. आजम का ये सितम कानून के किसी रजिस्टर में दर्ज नहीं हो सका.
आजम ने कब्रिस्तान में गरीबों पर चलवाया था बुलडोजर
साल 2016 का वो दिन रामपुर वाले कभी नहीं भूल सकते. सैकड़ों लोगों की भीड़ के सामने कब्रिस्तान की जमीन पर कुछ गरीबों पर बुलडोजर चला था. बुलडोजर आगे आया, पीछे आजम खान आए. स्थानीय लोगों के मुताबिक राजकीय रजा स्नातकोत्तर महाविद्यालय के सामने एक पुराना कब्रिस्तान है. यहां कुछ जमीन ऐसी थी, जहां किसी की कब्र नहीं थी. किनारे की जमीन पर अमूमन कब्र नहीं बनाई जाती. कब्रिस्तान की इसी तरह की थोड़ी बहुत खाली जमीन पर करीब 10-12 परिवार पॉलिथिन डालकर रहते थे.
स्थानीय लोगों के मुताबिक आजम ख़ान के आदेश पर वहां बुलडोजर पहुंचा. स्थानीय प्रशासन के लोग साथ थे. कुछ ही देर में गरीब मुस्लिम परिवारों का सामान हटा दिया गया. इसके बाद बुलडोजर चलाकर कच्ची दीवारें गिरा दी गईं. वहां बैरिकेडिंग कर दी गई. कुछ ही दिनों में वहां चारदीवारी बन गई. आजम ने इस बुलडोजर एक्शन को लेकर वहां के लोगों से कहा कि कब्रिस्तान की जमीन पर अवैध कब्ज़े रोकने के लिए ऐसा किया गया है. लेकिन, ये नहीं बताया कि जो नसीब के मारे कब्रिस्तान में आशियाना बनाकर जी रहे थे, उन्हें कहीं बसाने का इंतजाम क्यों नहीं किया.
नवाबों का महल तुड़वाने की धमकी देते थे आजम!
रामपुर का नवाब खानदान देश-विदेश में अपनी दरियादिली और सांस्कृतिक धरोहर के लिए जाना जाता है. नवाब हामिद अली खां ने रामपुर में रजा लाइब्रेरी की बुनियाद तैयार करवाकर देश को बेमिसाल तालीम की जगह में तब्दील किया था. नवाब परिवार हमेशा से कांग्रेस के साथ था. नवाब रजा अली खां और बेगम नूर बानो कांग्रेस के काफी करीब रहे. नूर बानो तो 1992 और 1999 में कांग्रेस के टिकट पर रामपुर से लोकसभा सांसद भी चुनी गईं. नवाब परिवार के सामने आजम खान ने खुद को स्थापित करने के लिए नफ़रत का सहारा लिया.
रामपुर के वरिष्ठ पत्रकार और स्थानीय लोग बताते हैं कि आजम खान नवाब के महल के सामने कई बार जनसभाएं करते थे. वो अक्सर ये भी कहते थे कि “ये जो ताज है उसको मैं एक दिन तुड़वा दूंगा. रजा लाइब्रेरी पर भी बुलडोज़र चलवाऊंगा”. नवाबों के खिलाफ़ खुलकर नफरती बयान देने वाले आजम 1990 के दशक से ही सुर्खियां बनने लगे थे. अखबारों में नवाब परिवार पर निजी हमले वाले आज़म के तल्ख बयान छपना आम बात थी.
आजम खान जिस रजा लाइब्रेरी पर बुलडोजर चलवाने की बात कहते थे, उसकी बुनियाद 1774 में तैयार हुई थी. पहले किताबों के उस महलनुमा घर को कुतुबखाना नाम मिला था. बाद में इसे रजा लाइब्रेरी कहा जाने लगा. नवाब रजा अली खां ने इस लाइब्रेरी को सिर्फ दुनिया भर की किताबों का घर ही नहीं बल्कि नायाब सांस्कृतिक धरोहर के रूप में पहचान दिलाई. आज केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय के तहत ये लाइब्रेरी हेरिटेज टूरिज्म की राह पर है.
“खुद को रामपुर का खुदा कहते थे आजम”
आज़म खान के सियासी उदय और अस्त दोनों के गवाह बनने वाले लोग एक हैरान करने वाला किस्सा बताते हैं. स्थानीय लोगों के मुताबिक आज़म खान ने बेग़म नूर बानो और उनके बेटे नवेद मियां को हमेशा से निशाने पर लिया. क्योंकि बेगम नूर बानो लोकसभा के तौर पर रामपुर में अपनी पैठ जमा चुकी थीं. वहीं, उनके बेटे नवेद मियां साल 2002 से स्वार विधानसभा में मज़बूती से चुनाव जीतते रहे. आजम ने अपने और अपने बेटे के लिए सियासी राह तलाशने में नूर बानो और नवेद मियां समेत नवाबों पर हमले जारी रखे.
स्थानीय पत्रकार बताते हैं कि कई बार बेगम नूर बानो को लेकर सार्वजनिक रूप से बोलने में वो हदें भूल जाते थे. इस बात का भी लिहाज नहीं रखते थे कि वो किसी महिला के बारे में बयान दे रहे हैं. बहरहाल, साल 2017 में आजम ने एक बहुत बड़ा बयान दिया था. रामपुर में 2017 के विधानसभा चुनाव में किले के मैदान में जनसभा हुई. यहां आजम ने कह दिया कि “ऊपर के फैसले खुदा करता है, नीचे के फैसले हम करते हैं”. यानी वो खुद को रामपुर का खुदा कह गए.
स्थानीय लोग कहते हैं कि 2012 से 2017 आजम तक आजम ने सितम की इंतहा कर दी थी. हालांकि, 2017 ही वो साल है, जब आजम का सियासी रसूख, उनकी किस्मत और सितम सबकी उल्टी गिनती शुरू हो गई थी. अब वो हर दिन खुद से यही कहते होंगे-
गर्दिश में बसर हो रही है जिंदगी,
अब चमकते सितारों की दरकार नहीं,
खुद ही गिरते और खुद ही संभलते हैं,
अब सहारों के दूर दूर तक आसार नहीं…