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जमीन पर सोये, एक दूसरे को हौसला दिया… मजूदर ने बयां किया कैसे कटे 17 दिन? | uttarkashi tunnel rescue lakhimpur kheri man manjeet told how workers spent 17 days in tunnel stwas

उत्तरकाशी टनल में फंसे सभी 41 मजदूर तो सुरंग से बाहर आ गए हैं, लेकिन लोगों में जेहन में एक सवाल कौंध रहा कि आखिर 17 दिन तक मजदूरों ने वहां कैसे अपनी जिंदगी के एक-एक पल काटे? ये 17 दिन मजदूरों के लिए 17 साल की तरह थे. जब सभी मजदूर बाहर आए तो सबके पास एक कहानी थी, जो वो सुनाना चाहते थे. चेहरे पर खुशी और कुछ कहने की चाहत लिए वह टनल पर मौजूद लोगों से मिल रहे थे. इन्हीं मजदूरों में से एक थे उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी जिले के रहने वाले मंजीत. मंजीत उत्तराखंड से निकल चुके हैं और लखीमपुर खीरी आ रहे हैं. टीवी9 डिजिटल से फोन पर बातचीत में मंजीत ने टनल के अंदर उन 17 दिनों की कहानी बयां की…

मंजीत ने बताया कि उनकी ड्यूटी शिफ्ट रात आठ बजे से सुबह आठ बजे तक होती थी. रोज हम लोग अपनी ड्यूटी पर जाते थे और समय पर वापस आ जाते थे. 11 नवंबर की रात को भी हम 41 लोग टनल में काम करने गए. रातभर काम किया. कुछ ही घंटे में शिफ्ट खत्म होने वाली थी, क्योंकि 12 नवंबर को दिवाली थी तो एक अगल तरह का मन में उत्साह था. बस सोचा था कि जल्दी से कमरे पर जाकर घरवालों को दिवाली की बधाई दूंगा और रात में पटाखे जलाऊंगा.

तेज आवाज आई और टनल घंस गई

इसी बीच भोर में 4 बजे के आसपास अचानक तेज आवाज आई और टनल धंस गई. हम लोग कुछ समझ ही नहीं पाए कि आखिर क्या हुआ? जब बाहर निकलने वाले रास्ते पर भागे तो देखा कि धूल का गुबार उठा रहा है. मलबा ही मलबा जमा था. बाहर से कोई आवाज तक नहीं सुनाई दे रही थी. अंदर से मदद की गुहार लगाई और चिल्लाए पर कोई जवाब नहीं मिला. इसके बाद हम सब लोग खौफ में आ गए. लगा कि जैसे मौत के मुहाने पर खड़े हैं, लेकिन जिंदा हैं.

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मंजीत ने बताया कि हमारा बाहर की टीम से संपर्क टूट चुका था. हम लोग कुछ समझ नहीं पा रहे थे. साथियों के अंदर एक अजीब सी घबराहट थी. उनको लग रहा था कि अब बाहर नहीं निकल पाएंगे. कुछ देर बार साथ में काम करने वाले हमारे अधिकारियों ने कहा कि चिंता मत करो, हम यहां से जरूर बाहर निकलेंगे. सबसे पहले अधिकारियों ने गिनती की कि कितने लोग टनल में फंसे हैं, ताकि बाहर से कोई भी मदद आती है तो ये बताया जा सके. गिनती में टोटल 41 लोग निकले.

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लखीमपुर खीरी के रहने वाले मंजीत भी टनल के अंदर फंसे थे.

4 इंच के पाइप ने पहुंचाया संदेश

मंजीत ने बताया कि अंदर दो-चार दिन का खाना था, लेकिन चिंता के मारे एक-दो दिन तक कुछ खाया-पिया ही नहीं गया. हम लोगों के दिमाग में बस यही था कि किसी तरह से ये संदेश बाहर पहुंचाया जाए कि हम लोग अंदर फंसे हुए हैं. मंजीत ने बताया कि हमने टनल ने अंदर एक पाइप तलाश की, जो बाहर तक जाती थी. उस पाइप से अक्सर पानी की सप्लाई होती थी, लेकिन उसमें मलबा भरा हुआ था. गब्बर सिंह नेगी ने दिमाग लगाते हुए पंप से पानी खींचा और 4 इंच की पाइप से बाहर फेंकना शुरू किया.

कैसे रेस्क्यू टीम से हुआ संपर्क?

कुछ देर बाद मलबा बाहर निकल गया और बाहर खड़ी रेस्क्यू टीम से हमारा संपर्क हो गया. रेस्क्यू टीम जान गई कि कुछ मजदूर अंदर फंसे हुए हैं. उन्होंने तुरंत एक वॉकी-टॉकी भेजा, जिससे हमारी रेस्क्यू टीम से बात हुई. हमारा हालचाल लेकर उन्होंने आश्वसान दिया कि हम जल्द ही उन्हें बाहर निकाल लेंगे. कुछ देर बार पाइप के जरिए चने, बिस्किट और ड्राई फ्रूट भेजे गए. रेस्क्यू टीम से हमारा संपर्क होने के बाद काफी हिम्मत मिली कि हमको बाहर निकालने के लिए युद्ध स्तर पर काम जारी है. इसी चार इंच की पाइप से हमें ऑक्सीजन मिल रही थी.

लूडो खेलकर किया टाइमपास

वहीं जब मंजीत से यह पूछा गया कि अंदर समय कैसे बिताते थे तो मंजीत ने बताया कि हम लोग अलग-अलग राज्य से थे, लेकिन काम के चलते हमारी दोस्ती हो गई थी. इन 17 दिनों में दोस्ती और अच्छी हो गई. हम लोग घर-परिवार की बातें करते थे. एक-दूसरे की हिम्मत बंधाते थे. साथ ही लूडो खेलते थे, जिससे हमारा समय अच्छे से कट गया. अच्छा था कि टनल में कभी बिजली नहीं गई, वरना और दिक्कत बढ़ जाती.

टनल से निकला तो पिता के गले लगकर रो पड़ा

मंजीत बताते हैं कि 17वें दिन टनल से जब वह बाहर आए तो उनके पिता बाहर खड़े मिले. पिता ने जब गले लगाया तो आंसू निकल पड़े. पिता भी रोने लगे. मंजीत ने बताया कि परिवार में वह अकेले बेटे ही हैं. एक भाई की मौत हो चुकी है. वह भी जब वहां फंसे तो परिवार बहुत डर गया था. मंजीत ने कहा कि हमारे पास खेती-बाड़ी नहीं है. घर का खर्च चलाने के लिए बाहर कमाने आना पड़ता है. कुछ दिन घर पर रहने के बाद फिर पहाड़ों पर लौटकर आएंगे.

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