लाइफस्टाइल

Grishneshwar Jyotirlinga Significance History Of 12th Jyotirlinga Interesting Facts Katha In Hindi

Grishneshwar Jyotirlinga, Sawan: 12 ज्योतिर्लिंग में सबसे आखिरी घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग का नाम आता है. भगवान शिव के ये शिवालय व मंदिरों पूरे देश में फैले हुए हैं, जिसका अपना अपना महत्व है. भारत के हर कोने में एक ज्योतिर्लिंग बसा हुआ है जिसमें सबसे ज्यादा महाराष्ट्र में है.

महाराष्ट्र में तीन ज्योतिर्लिंग है – भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग, घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग और त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग.  घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के औरंगाबाद के पास दौलताबाद क्षेत्र में स्थित है. इन्हें घुश्मेश्वर के नाम से भी जाना जाता है. आइए जानते हैं कैसे पड़ा घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग का नाम, महत्व और रोचक बातें.

ऐसे पड़ा घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग का नाम (Grishneshwar Jyotirlinga History)

घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग भोलेनाथ की अपार भक्त रही घुष्मा की भक्ति का प्रतीक है. उसी के नाम पर ही इस शिवलिंग का नाम घुष्मेश्वर पड़ा था. कहते हैं कि यहा मौजूद सरोवर, जिसे शिवालय के नाम से जाना जाता है उसके दर्शन किए बिना ज्योतिर्लिंग की यात्रा संपन्न नहीं होती है. मान्यता है कि जो निःसंतान दम्पती को सूर्योदय से पूर्व इस शिवालय सरोवर के दर्शन बाद घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन करता है उसकी संतान की प्राप्ति कामना जल्दू पूरी होती है.

घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग की रोचक जानकारी (Grishneshwar Jyotirlinga Interesting facts)

घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग पूर्वमुखी है,सर्व प्रथन स्वंय सूर्यदेव इनकी आराधना करते हैं. मान्यता है कि सूर्य के जरिए पूजे जाने के कारण घृष्णेश्वर दैहिक, दैविक, भौतिक तापों का धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष का सुख प्रदान करते हैं. आदि शंकराचार्य ने कहा था कि कलियुग में इस ज्योतिर्लिंग के स्मरण मात्र से रोगों, दोष, दुख से मुक्ति मिल जाती है.

घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा (Grishneshwar Jyotirlinga Katha)

दक्षिण देश में देवगिरि पर्वत के पास सुधर्मा नाम का ब्राह्मण अपनी पत्नी सुदेहा के साथ निवास करता था. इनकी कोई संतान नहीं थी, जिसके कारण दोनों चिंतित रहते थे. ब्राह्मण की पत्नी ने अपने पति का विवाह सुदेहा ने छोटी बहन घुष्मा से करवा दिया. घुष्मा शिव जी की परम भक्त थी. भगवान शिव की कृपा से उसे एक स्वस्थ पुत्र की प्राप्ति हुई लेकिन घुष्मा का हंसता खेलता परिवार देखकर सुदहा को अपनी बहन से ईर्ष्या होने लगी. क्रोध में आकर उसने घुष्मा की संतान की हत्या कर उसे कुंड में फेंक दिया.

शिव कृपा से दोबारा जीवित हुआ पुत्र

घुष्मा को जब इस बात का पता लगा तो वह दुखी हुआ बिना शिव की पूजा में रोज की भांति तल्लीन रही. महादेव उसकी भक्ति से बेहद प्रसन्न हुए और शिव जी के वरदान से घुष्मा का पुत्र दोबारा जीवित हो उठा. घुष्मा की प्रार्थना पर भगवान शिव ने उसी स्थान पर रहना का वरदान दिया और कहा कि मैं तुम्हारे ही नाम से घुश्मेश्वर कहलाता हुआ सदा यहां निवास करूंगा. प्राचीन काल में यहां घुष्मा ने 101 पार्थिव शिवलिंग बनाकर पूजा की थी, जिससे शिव बेहद प्रसन्न हुए थे. यही वजह है कि यहां मनोकामना पूरी होने पर 108 नहीं बल्कि 101 परिक्रमा की जाती है. 

Sanskar: सीमन्तोन्नयन संस्कार क्या है, गर्भ में पल रहे शिशु के लिए क्यों बताया गया है लाभकारी, जानें इसका महत्व और विधि

Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि ABPLive.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें. 

Show More

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button