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5KM खुला मैदान, न लाइट का इस्तेमाल और न ही माइक… काशी में शुरू हुई 240 साल पुरानी रामनगर की रामलीला

5KM खुला मैदान, न लाइट का इस्तेमाल और न ही माइक... काशी में शुरू हुई 240 साल पुरानी रामनगर की रामलीला

रामलीला का मंचन

उत्तर प्रदेश में गंगा किनारे जिस अस्सी घाट पर गोस्वामी जी ने राम चरित मानस लिखी उसके दूसरे छोर पर रामनगर के पांच किलोमीटर के दायरे में प्रभु श्रीराम के जीवन चरित्र का मंचन होता है. अनंत चतुर्दशी से रामनगर की रामलीला शुरू होकर पूरे एक महीने तक चलती है. इस रामलीला की सबसे खास बात ये है कि इसका मंचन पांच किलोमीटर के दायरे में अलग-अलग जगहों पर होता है. जगहों के नाम भी रामायण काल के ही हैं. जनकपुरी, लंका, अयोध्या जैसे जगहों पर उससे जुड़े प्रसंगों का मंचन होता है.

लगातार हो रही बारिश के बीच काशी राजपरिवार के कुंवर अनंत नारायण सिंह कार से उतरकर हाथी से मंचन स्थल तक पहुंचे, जहां उनको गार्ड ऑफ़ ऑनर दिया गया. 1783 में काशी नरेश उदित नारायण सिंह ने इसकी शुरुआत की थी. तब से इस लीला का मंचन निरंतर चला आ रहा है. आज भी इस लीला में जब काशी नरेश अनंत नारायण सिंह हाथी पर सवार होकर इसे निहारने आते हैं तो हर-हर महादेव के जयघोष से उनका स्वागत किया जाता है.

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दूर-दूर से आते हैं लोग

विश्व प्रसिद्ध रामनगर की रामलीला को देखने के लिए एक महीने तक साधु संत और आम लोग अपनी पूरी तैयारी के साथ रामनगर के अलग-अलग स्थान पर मौजूद रहते हैं. अनंत चतुर्दशी से हर दिन शाम 5:00 बजे से देर रात तक इस रामलीला का आयोजन किया जाता है. 240 साल पुरानी परंपरा के अनुसार आज भी इस रामलीला में किसी प्रकार की आधुनिक व्यवस्था का इस्तेमाल नहीं किया जाता. मिट्टी के तेल वाले लैंप और लाउडस्पीकर के बिना ही इस खास रामलीला का आयोजन होता है. इसके अलावा रामनगर की रामलीला में शामिल होने वाले अलग-अलग पात्र भी कई हफ्ते पहले से ही इसकी तैयारी में जुट जाते हैं.

रामचरितमानस पाठ से लेकर रामलीला में भाग लेने वाले कलाकार समर्पित भाव से इसमें प्रतिभाग करने के लिए उत्सुक रहते हैं. आस-पास के लोग इसमें कलाकार की हैसियत से प्रतिभागी होते हैं. चंदौली के अथर्व पाण्डेय इस बार प्रभु श्रीराम की भूमिका निभाएंगे. 2008 में इसको यूनेस्को की धरोहर लिस्ट में शामिल किया गया था.

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सात घंटे के लिए होता है रामलीला का मंचन

प्रतिदिन करीब सात घंटे के लिए पांच किलोमीटर के क्षेत्र में खुले आसमान के नीचे एक विस्तृत मंच पर खेला जाता है, और प्रत्येक छंद या चौपाई का मंचन किया जाता है. आधुनिक समय में भी इस रामलीला के स्वरूप में कोई बदलाव नहीं आया है. पूरा माहौल उत्सवी होता है और परंपराएं बरकरार रहती हैं. अयोध्या, जनकपुरी, लंका, अशोक वाटिका आदि जैसे विभिन्न स्थानों का प्रतिनिधित्व करने वाली स्थायी और अस्थायी संरचनाएं हैं. रामनगर रामलीला अपने भव्य सेट, संवाद, प्रकाश, ध्वनि, पृष्ठभूमि और दृश्य तमाशे के लिए लोकप्रिय है. दिलचस्प बात यह है कि भक्त, दर्शक हर एपिसोड के साथ कलाकारों के साथ अगले स्थान पर जाते हैं. रामनगर अपने अभिनय के साथ एक चलता-फिरता मंच बन जाता है.

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