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Mahabharat Katha Bhishma Pitamah Preaching Updesh To Arjuna Before His Death

Mahabharat Story in Hindi: महाभारत में अनंत ज्ञान का भंडार समाहित है. महाभारत में केवल युद्ध ही नहीं बल्कि इसमें धर्म, नीति, राजनीति, ज्ञान, विज्ञान, शास्त्र, योग, इतिहास, मानवशास्त्र, रहस्य, दर्शन, व्यवस्था आदि का संपूर्ण समावेश है. इसलिए हर किसी को इस धार्मिक ग्रंथ का पाठ जरूर करना चाहिए.

महाभारत में भीष्म पितामह की भूमिका

महाभारत युद्ध में भीष्म पितामह की अहम भूमिका थी. वो इस युद्ध के मुख्य पात्र भी थे. भीष्म पितामह महाकाव्य के कुरुक्षेत्र युद्ध के दौरान कौरवों की सेना के सर्वोच्च सेनापति थे. साथ ही वे एकमात्र ऐसे पात्र थे, जिन्होंने महाभारत युद्ध की पूरी घटनाओं को देखा. भीष्म पितामह ने महाभारत के युद्ध में कौरवों की तरफ से युद्ध में भाग लिया था.

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18 दिन तक चले महाभारत के युद्ध में भीष्म पितामह 10 दिन में ही युद्ध के दौरान अर्जुन के बाणों की शर शय्या पर आ गए. लेकिन उन्होंने अपना शरीर नहीं त्यागा. क्योंकि वे सूर्य के उत्तरायण होने पर ही शरीर त्यागना चाहते थे. इस तरह से भीष्म पितामह पूरे 58 दिनों तक मृत्यु शय्या पर रहकर माघ शुक्ल पक्ष में सूर्य के उत्तरायण होने के बाद अपना शरीर त्याग दिया.

भीष्म पितामह ने मृत्यु से पहले अर्जुन को दिया यह ज्ञान

कहा जाता है कि जब महाभारत का युद्ध हुआ था उस समय भीष्म पितामह की आयु डेढ़ सौ से भी अधिक वर्ष थी और अर्जुन 55 वर्ष के थे. महाभारत युद्ध के दौरान अर्जुन के ही तीरों से भीष्म पितामह बाणों की शय्या पर आ गए थे. 58 दिनों कर भीष्म पितामह शर शय्या पर रहे और उन्होंने सभी को ज्ञान दिया. शरीर त्यागने से पहले भीष्म पितामह ने अर्जुन को भी सीख दी थी जोकि इस प्रकार है- ‘सुखों की लालसा में मर्यादा का त्याग नहीं करना चाहिए.’

  • सुख दो तरह के मानवों को ही मिलता है. पहले वो जो सर्वाधिक मूर्ख होते हैं और दूसरे वो जिन्होंने बुद्धि के प्रकाश में ज्ञान का तत्व देख लिया है. इसके अलावा जो लोग बीच में लटक रहे हैं, वे सदा दुखी रहते हैं.
  • वैसी बात करें, जिससे दूसरों को कष्ट न हो, दूसरों को बुरा भला कहना, निन्दा करना, बुरे वचन बोलना, इसका परित्याग करना ही सबसे बेहतर है. दूसरों का अपमान, अहंकार और दम्भ सबसे बड़े शत्रु हैं.
  • त्याग बिना कुछ नहीं मिल सकता है, न कोई परम आदर्श सिद्ध हो सकता है. त्याग बिना मनुष्य डर से मुक्ति नहीं पा सकता है. त्याग से ही मानव को हर सुख मिलने की संभावना बनती है.
  • जो पुरुष भविष्य पर अधिकार रखता है, दूसरों की कठपुतली नहीं बनता और समयानुकूल तत्काल विचार कर सकता है वह हमेशा सुख हासिल करता है. जबकि आलस्य मानव का नाश कर देता है.
  • एक शासक को पुत्र और प्रजा में किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं रखना चाहिए. ये शासन में अडिगता और प्रजा को समृद्धि प्रदान करता है.
  • भीष्म पितामह ने कहा था कि सत्ता सुख के लिए भोगने नहीं, बल्कि कठिन परिश्रम कर समाज का कल्याण करने के लिए होता है.

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