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Lord Shri Krishna Story When Mata Yashoda Caught Kanha Eating Soil Know Kanha Ki Baal Leela

Shri Krishna Ki Baal Leela Katha: भगवान श्रीकृष्ण के अद्भुत और अलौकिक लीलाओं के दर्शन कई जगह मिलते हैं. फिर चाहे वह पड़ोस के घर में मटकी तोड़कर माखन चुराने की हो या फिर स्नान करती गोपियों से वस्त्र चुराना. कृष्ण की अलग-अलग लीलाओं के कारण ही उन्हें कई नाम भी मिले. कृष्ण की कई लीलाओं में एक अद्भुत लीला से मैय्या यशोदा भी चकित रह गई थीं. जानिए जब यशोदा मैय्या ने कान्हा को माटी खाते हुए पकड़ लिया, तब क्या हुआ था?

कान्हा के माटी खाने की लीला से जुड़ी कहानी

कान्हा बचपन में केवल माखन-मिश्री ही नहीं बल्कि माटी भी खाते थे. एक बार यशोदा मैय्या से किसी ने शिकायत कर दी कि, तुम्हारा लल्ला माटी खा रहा है. यह सुनकर यशोदा मैय्या तुरंत कान्हा के पास पहुंची और कान्ह को धमकाते हुए कहा, लल्ला तूने माटी खाई है.

मुख में माटी होने के कारण कान्हा ने गर्दन हिलाकर न में उत्तर दिया. तब मैय्या यशोदा ने यह जानने के लिए कि कान्हा झूठ बोल रहे हैं या सत्य, जबरदस्ती उनसे मुंह खोलने को कहा. जैसे ही कान्हा ने अपना मुख खोला, मैय्या यशोदा को पूरे ब्रह्मांड के दर्शन हो गए.

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कान्हा के छोटे से मुख में अंतरिक्ष, दिशाएं, द्वीप, पर्वत, समुद्र समेत पूरा ब्रह्मांड नजर आ रहा था. कान्हा के मुख में ऐसा दृश्य देख एक बार तो मैय्या यशोदा भी यह सोचने लगी कि कहीं यह स्वप्न को नहीं और चकित होकर वहीं गिर पड़ीं.

इधर श्रीकृष्ण भी समझ गए कि मैय्या उनके तत्व और अलौकिक शक्तियों से अवगत हो गई हैं. तब श्रीकृष्ण ने तुरंत अपनी शक्ति रूप माया विस्तृत कर दी, जिससे क्षणभर में मैय्या यशोदा सबकुछ भूल गईं और उन्होंने कान्हा को उठाकर अपनी गोद में बिठा लिया.

श्रीकृष्ण को लगता है माटी का भोग

श्रीकृष्ण की इस बाल लीला के कारण उन्हें माखन-मिश्री के साथ ही माटी का भोग भी लगाया जाता है.  मथुरा जनपद के महावन क्षेत्र में स्थित श्रीकृष्ण के एक मंदिर में भगवान को माटी का भोग लगाया जाता है. इस मंदिर के समीप ही यमुना नदी है.

भगवान के प्रसाद के लिए पेड़े का भोग तैयार करने के लिए यमुना से मिट्टी निकाली जाती है और पेड़े का भोग बनाया जाता है. जन्माष्टमी के साथ ही सामान्य दिनों में भी यहां भक्तों की भारी भीड़ होती है. कहा जाता है कि यमुना नदी के इसी घाट के पास भगवान कृष्ण के मुख में मैय्या यशोदा को ब्रह्मांड के दर्शन हुए थे, इसलिए इसे ‘ब्रह्मांड घाट’ कहा जाता है और यहां स्थित भगवान को ‘ब्रह्मांड में हरी’ के नाम से जाना जाता है.

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