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बलिया में बनी थी बाटी, बक्सर में भरा गया सत्तू का मसाला, 9400 साल पुरानी है कहानी

पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार का लिट्टी चोखा एक प्रसिद्ध व्यंजन है. आपने इसका नाम तो खूब सुना होगा, शायद खाया भी होगा. लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह लिट्टी और चोखा पहली बार कब बना और किन परिस्थितियों में बना? इसको लेकर लोग अलग-अलग जानकारी देते हैं. यदि आपको नहीं मालूम है तो हम यहां आपको बताने जा रहे हैं.

दरअसल लिट्टी चोखे का इतिहास करीब 9400 साल पुराना है. पहली बार यह व्यंजन उस समय बना था, जब दुनिया के पहले ज्योतिष विज्ञानी भृगु ऋषि ने अपने शिष्य दर्दर मुनि के सहयोग से सरयू की जलधारा को बलिया में गंगा से जोडा था. उस समय से पहले सरयू की जलधारा केवल अयोध्या तक ही प्रवाहित होती थी. पौराणिक साक्ष्यों के मुताबिक, यह वही समय था जब दुनिया में पहली बार नदी को नदी से जोड़ने की, ना केवल योजना बनी, बल्कि उसे अमली जामा भी पहनाया गया. इस उपलब्धि को हासिल करने के बाद सरयू और गंगा के इस संगम वाले स्थान पर ऋषि मुनियों ने एक छोटा आयोजन किया था. इस आयोजन में बाटी बनाई गई थी.

ऋषियों ने किया था भोज का आयोजन

ऋषियों ने सामूहिक भोज के लिए अपने हाथों से लिट्टी चोखा तैयार किया था. पद्म पराण के भृगु क्षेत्र महात्म्य प्रखंड में इस प्रसंग को विस्तार से बताया गया है. इस प्रसंग को मत्स्य पुराण में भी स्थान मिला है. हालांकि यहां बहुत कम लिखा गया है. उस समय जो लिट्टी बनी थी, उसमें मसाला नहीं भरा गया था. कालांतर में इस व्यंजन को खूब प्रसिद्धि मिली. इसके बाद सभी आश्रमों में बनने वाला यह दिव्य व्यंजन बन गया.

ये सत्तू भरने की कहानी

पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस व्यंजन को मौजूदा रूप देने का श्रेय राजर्षि विश्वामित्र को जाता है. वह गंगा पार, जिसे आज बक्सर के नाम से जानते हैं, वहां आश्रम बनाकर रहते थे. चूंकि वह राज परिवार से थे और अलग-अलग स्वाद के व्यजन खाने के शौकीन थे. इसलिए उन्होंने लिट्टी में चने के सत्तू से बना मसाला भरकर प्रयोग किया. उसके बाद से यह दिव्य व्यंजन ऋषि मुनियों के आश्रमों से निकलकर खेतीहर किसानों और सामान्य परिवारों तक पहुंचता चला गया. बल्कि अब यही व्यंजन कई अन्य रुपों और स्वरुपों में बंगलों और कोठियों तक में पहुंच गया है.



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