आंखें ऐसी की नजर न हटे… कौन थीं रानी बेतिया? जिनकी कल खुलेगी तिजोरी


बेतिया रानी
बिहार के तीन प्रमुख राजघरानों में से एक बेतिया राज की महारानी जानकी कुंअर आज फिर चर्चा में हैं. करीब डेढ़ साल पहले उनका निधन साल 1954 में उत्तर प्रदेश के प्रयागराज स्थित कोठी में हो गया था. इसके बाद बाद कोर्ट्स ऑफ़ वार्ड ने उनकी कोठी और जमीन तो अपने कब्जे में ले ही लिया था, लेकिन उनकी तिजोरी भी उठवाकर स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की त्रिवेणी शाखा में रखवा दिया था. अब बिहार राजस्व परिषद की टीम ने प्रयागराज पहुंच कर बेतिया रानी की संपत्तियों को चिन्हित करने की कोशिश की है.
इसी क्रम में स्टेट बैंक में रखी उनकी तिजोरी को खुलवाया जा रहा है. बताया जा रहा है कि इस तिजोरी में करीब 200 सौ करोड़ रुपये से भी अधिक की संपत्ति बंद है. चूंकि अपने निधन के 71 साल बाद बेतिया रानी जानकी कुंवर की चर्चा शुरू ही हो गई है तो आइए पहले उनके बारे में जान लेते हैं. लेकिन प्रसंग पर चलने से पहले जान लीजिए कि यह वही रानी बेतिया हैं, जिनके बारे में जानने के लिए बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन आज भी उतने ही उत्सुक है, जितने वह बचपन में हुआ करते थे.
हरिवंश राय बच्चन की कृतियों में बेतिया रानी
यह उन्हीं बेतिया रानी की कहानी हैं, जिनके बारे में अमिताभ बच्चन के पिता हरिवंश राय बच्चन ने अपनी कृतियों ‘अधूरे ख्वाब’ और ‘बसेरे से दूर’ में जिक्र किया है. आइए अब मूल प्रसंग पर चलते हैं, मतलब यह जानने की कोशिश करते हैं कि बेतिया रानी कौन थीं. इस सवाल के जवाब की शुरुआत आज के बिहार से होती है. वह साल 1883 का था, जब बिहार के सबसे बड़े राजघराने बेतिया राज के महाराजा राजेंद्र किशोर सिंह का निधन हुआ था. उस समय उनके बेटे हरेंद्र किशोर ने गद्दी संभाली थी. महाराज हरेंद्र किशोर एक कुशल नेता और प्रशासक थे. इसका लोहा अंग्रेज सरकार भी मानती थी.
बिना उत्तराधिकारी दिए मर गए महाराज
यही वजह थी कि उन्हें 1884 में महाराजा बहादुर की उपाधि दी गई. यही नहीं, उन्हीं दिनों उन्हें बंगाल के लेफ्टिनेंट गवर्नर सर ऑगस्टस रिवर्स थॉम्पसन से ख़िलाफ़त और सनद भी दी गई. फिर 1 मार्च 1889 को उन्हें भारतीय साम्राज्य के सबसे प्रतिष्ठित आदेश का नाइट कमांडर बनाया गया था. इन सारी ख्यातियों और उपलब्धियों के बावजूद महाराजा हरेंद्र सिंह की बड़ी कमी यह थी कि उनकी कोई औलाद नहीं थी. अपने पिता के रहते उन्होंने शिव रत्ना कुंवर से शादी की थी, लेकिन बाप नहीं बन पाए तो कुछ दिन बाद उन्होंने जानकी कुंवर से शादी रचाई. इसके बाद भी उन्हें कोई औलाद नहीं हुई और आखिर में 26 मार्च 1893 को बेतिया राज को बिना उत्तराधिकारी दिए ही वह मर गए.
बला की खूबसूरत थी रानी बेतिया
उनके निधन के बाद महारानी शिव रत्ना कुंवर ने राज संभाला, लेकिन 24 मार्च 1896 को उनका भी निधन हो गया. ऐसे में उनकी दूसरी महारानी जानकी कुंवर पूरी राज संपत्ति की वारिश बन गईं. महारानी जानकी कुंवर बहुत सुंदर थी. उनके होठ और गाल ऐसे थे मानो रस टपक रहा हो, आखें ऐसी थीं कि नजर ना हटे और भरा पूरा बदन तो कहर ही ढाता था. कहा जाता है कि महाराज हरेंद्र सिंह ने जब पहली बार इन्हें देखा तो वह सुध बुध खो बैठे थे. बेतिया रानी की खूबसूरती की चर्चा हरिवंशराय बच्चन भी करते हैं.
1954 में हुआ बेतिया रानी का निधन
यह सबकुछ होने के बाद भी उनके अंदर राजकाज संभालने की क्षमता नहीं थी. इसलिए ब्रिटिश राज ने उनकी राजकीय संपत्ति को अपने कब्जे में ले लिया था. इसके बाद महारानी जानकी कुंवर बेतिया से तत्कालीन इलाहाबाद यानी आज के प्रयागराज में आ गईंं और यहीं पर उन्होंने भव्य कोठी का निर्माण कराया और रहने लगीं. यहीं पर 27 नवंबर 1954 को उनका निधन हो गया और इसके बाद यह कोठी और उनकी संपत्ति कोर्ट्स ऑफ वार्ड ने कब्जे में ले लिया था. करीब 22 बीघे में बनी इनकी कोठी आज भी यहां मौजूद है, जिसके बारे में हरिवंश राय बच्चन ने जिक्र किया है. यह कोठी फिलहाल सरकार के कब्जे में है.