स्टेट, कवर ड्राइव से लेकर अड़े-तिरछे शॉट तक, बीते 30 सालों में कितना बदला क्रिकेट

<p>90 का दशक था. भारत के आर्थिक हालात खस्ता थे. खजाने में इतना ही पैसा बचा था कि सरकार का कामकाज कुछ और दिन ही चलाया जा सकता था. नौकरशाही और सरकारी नियंत्रण की व्यवस्था में जकड़े भारत के सामने अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर एक नहीं कई चुनौतियां सामने थीं. भ्रष्टाचार और बेरोजगारी के कुचक्र में जकड़े युवाओं के पास कोई सपना नहीं था.</p>
<p>लेकिन उसी दौर में एक लड़का था जो अंतरराष्ट्रीय मंच पर यह साबित करने में जुटा था कि भारत के पास अभी दिखाने के लिए बहुत कुछ है. ये लड़का आगे चलकर ‘क्रिकेट का भगवान’ बना नाम था सचिन रमेश तेंदुलकर’. </p>
<p>1991 में भारत ने अर्थव्यवस्था को उबारने के लिए सोने को ईरान के पास गिरवी रख दिया और यहीं से भारत में मुक्त अर्थव्यवस्था की भी शुरुआत भी हुई. भारत का बाजार विदेशियों के लिए खोल दिया गया था.</p>
<p>एक ओर भारत एक बाजार में तब्दील हो रहा था तो सचिन तेंदुलकर इस बाजार के बड़े एक ब्रांड ऐम्बेस्डर के रूप में उभर रहे थे. निराशा के दौर से उबर रहे भारत के पास अंतरराष्ट्रीय मंचों पर दिखाने के लिए सचिन तेंदुलकर नाम का सितारा था. </p>
<p>सचिन का जादू सिर चढ़कर बोल रहा था. उनके आउट होने पर स्टेडियम में आग लगा देने की घटना आम हो चुकी थी. बैटिंग के लिए सचिन के मैदान में आते ही धड़कनें तेज हो जाती हैं. उनके बल्ले से गेंद टकराते ही ‘टक’ सी आने वाली आवाज सकून देती थी. लेकिन उस दौर से लेकर आज तक सिर्फ भारत ही नहीं क्रिकेट भी बदल गया है. उस दौर से लेकर क्रिकेट कितना बदल गया और वो जुनून कहां गायब हो गया. </p>
<p><br /><img src="https://feeds.abplive.com/onecms/images/uploaded-images/2023/05/02/7c1c575c9e83f08c238c890998df86d51683000976407524_original.jpg" /></p>
<p><strong>रन रेट किस तरह बढ़ा, स्कोर हो गया रॉकेट</strong><br />यूपी के एक गांव में 10-15 लोग कमरे में बैठकर आईपीएल मैच देख रहे हैं. 5 ओवर में करीब 50 रन बन चुके हैं. लेकिन वहां बैठे क्रिकेट प्रेमियों को लग रहा है कि पिछले ओवर में सिर्फ 10 रन बने हैं. उनकी फेवरिट टीम जो कि बल्लेबाजी कर रही है वो उसके प्रदर्शन इन युवाओं का चेहरा ऐसा लग रहा है जैसे कि उनके मुंह का स्वाद कसैला हो गया है. आईपीएल आने से पहले टीमें 15 ओवर में अगर 50-60 रन बना लेती थीं तो माना जाता था कि ओपनिंग शानदार हुई है. आईपीएल ने क्रिकेट को पूरी तरह से बदल दिया है. आज के क्रिकेट प्रेमियों से इस बात से मतलब नहीं है कि चौका स्टेट ड्राइव से आ रहा या कवर ड्राइव से.</p>
<p><br /><img src="https://feeds.abplive.com/onecms/images/uploaded-images/2023/05/02/0cb96c7de20c4c0990baf6affc484ce61683001113726524_original.jpg" /></p>
<p>अगर हम आंकड़ों पर गौर करें तो वनडे क्रिकेट में 5.10 की औसत से रन बने हैं. वहीं 2021-22 में ये औसत 5.02 हो गया. हालांकि इस ये मतलब नहीं है कि बल्लेबाजी धीमी हो गई है. दरसअल कुछ नियमों बदलाव इसकी वजह है. लेकिन अगर हम थोड़ा और पीछे जाएं यानी 2015 में तो 5.50 की औसत से रन बने हैं. वहीं 2007 से 2015 के बीच रनों के औसत में 9.12 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. हालांकि 1993 से लेकर 2005 के बीच यह औसत 16.97 फीसदी था. मतलब साफ है कि 90 के दशक से ही वनडे क्रिकेट में रनों का औसत बढ़ता ही रहा है. हालांकि इस दौरान बीच-बीच में कमी भी आई है. </p>
<p><strong>वनडे में 400 रन</strong></p>
<p>90 के दशक से वनडे क्रिकेट में रन औसत बढ़ना कोई चौंकाने वाली बात नहीं थी. लेकिन एक पारी में चार सौ रन का स्कोर खड़ा करने की बात कोई सोचता भी नहीं था. लेकिन साल 2006 में ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका के बीच एक मैच हुआ जिसमें कंगारुओं ने पहले बल्लेबाजी करते हुए 434 रन बना डाले. लेकिन हैरानी का बात ये थी कि अफ्रीकी बल्लेबाजों ने 438 रन बनाकर मैच जीत लिया. वहीं 17 जून 2022 को इंग्लैंड ने नीदरलैंड के खिलाफ 498 रन बना डाले.</p>
<p><strong>टी-20 ने बैटिंग पर कितना असर डाला</strong></p>
<p>इसमें दो राय नहीं है कि टी-20 मैच के बाद से बल्लेबाजों का ज्यादा ध्यान तेजी से स्कोर बनाने पर रहा है न कि क्रीज पर समय बिताने पर. एक दौर था जब माना जाता था कि जिस खूंटा गाड़ कर मैच जिताने वाला ही सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाज है. </p>
<p>अगर आंकड़ों को देखें तो बैटिंग एवरेज ने 2018 से लेकर 2021 के बीच बड़ा गोता लगाया है. टेस्ट में बल्लेबाजी का औसत 30 रन से नीचे रहा है. साल 2018 में 26.28 रहा है जो बीते 30 सालों में सबसे कम था. हालांकि एक वजह अच्छी गेंदबाजी और पिच भी हो सकती है. ये जरूरी नहीं है कि बल्लेबाजी में कम औसत कम स्टाइक रेट की वजह भी साबित हो.</p>
<p>अगर 90 दशक से देखें तो स्ट्राइक रेट का औसत 40 से 50 तक गया है. साल 2019 में जब बल्लेबाजी का औसत गिरकर 29.34 था तो स्ट्राइक रेट का औसत बढ़कर 50 से ज्यादा हो गया था.</p>
<p><strong>पहले से ज्यादा खेले जाते हैं मैच</strong></p>
<p>30 सालों में क्रिकेट की दुनिया में सबसे बड़ा बदलाव ये आया है कि अब लगभग हर टीम किसी न फ्रेंचाइजी के जरिए खेल रही है. इसके साथ ही अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट टूर्नामेंट की संख्या भी बढ़ गई है. साल 2022 में 301 अंतरराष्ट्रीय मैच खेले गए हैं. इसकी एक बड़ी वजह कोविड-19 की वजह से रुके हुए टूर्नामेंट भी थे.</p>
<p>इसके साथ ही टेस्ट खेलने वाले देशों की संख्या भी बढ़ गई है. टीमों के कलेंडर में 90 के दशक की तुलना में कहीं ज्यादा मैच शेड्यूल होते हैं. टीम इंडिया ने 2017, 2018 और 2019 में 50 अंतराष्ट्रीय मैच खेले हैं. जबकि साल 2005 से पहले टीम ने सिर्फ तीन बार ही साल में 50 से ज्यादा मैच खेले हैं.</p>
<p>अगर इन आंकड़ों को व्यक्तिगत तौर पर खिलाड़ियों से जोड़ें तो ऐसा नहीं है कि खिलाड़ी ज्यादा मैच खेल रहे हैं. साल 2014 से पहले कई खिलाड़ी साल भर में 50 से ज्यादा क्रिकेट खेल चुके हैं. साल 1999 में राहुल द्रविड़, साल 2000 में मोहम्मद युसुफ और साल 2007 में महेंद्र सिंह धोनी ने 50 मैच खेले हैं.</p>
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<p><br /><img src="https://feeds.abplive.com/onecms/images/uploaded-images/2023/05/02/277d8c811308ea5b283280a5ca9879421683001264306524_original.jpg" /></p>
<p>साल 2018 में अफगानिस्तान के गेंदबाज राशिद खान ने 83 मैच खेले हैं. इसमें फ्रेंचाइजी के भी मैच शामिल हैं. हालांकि 90 और 2000 के दशक में फ्रेंचाइजी क्रिकेट नहीं था. क्रिकइनफो वेबसाइट में दिए डाटा को मानें तो साल 1993 में इयॉन हेली एक ऐसे खिलाड़ी थे जिन्होंने एक कैलेंडर वर्ष में 53 मैच खेले थे. जिसमें 27 मैच ऐसे थे जो 4 या 5 दिन तक चले थे. वहीं साल 2022 में राशिद खान ने वनडे मैच खेलें हैं. इस हिसाब से इयॉन हिली ने राशिद खान से दिन की संख्या के हिसाब से ज्यादा दिन मैदान में बिताए हैं. </p>
<p><strong>अब क्रिकेटरों का लंबा करियर</strong></p>
<p>पहले की तरह अब क्रिकेटरों के पास लंबा करियर है. खासकर बॉलरों के पास. हालांकि जिस तरह से कंपटीशन और प्रदर्शन को लेकर दबाव है, फिटनेस को बनाए रखना एक बड़ी चुनौती है. लेकिन उसी हिसाब से सुविधाओं का स्तर भी बढ़ गया है. 1993 तक टेस्ट क्रिकेट में दस हजार रनों के क्लब में सिर्फ 2 खिलाड़ी शामिल थे अब इनकी संख्या 14 है.</p>
<p>बात करें बॉलरों की तो जब फ्रेड ट्रमैन ने 1965 में संन्यास लिया तो उनके खाते में 300 विकेट थे. उनका मानना था कि ये रिकॉर्ड शायद ही कोई तोड़ पाए और क्रिकेट में रुचि रखने वाले भी उनकी राय से इत्तेफाक रखते थे. लेकिन <a title="साल 2023" href="https://www.toplivenews.in/topic/new-year-2023" data-type="interlinkingkeywords">साल 2023</a> तक आते-आते 300 विकेट लेना अब बहुत ही छोटी उपलब्धि हो चुकी है. अब तक 17 बॉलर 400 विकेट ले चुके हैं.</p>
<p><strong>बीते 30 सालों आए कई सितारे<br /></strong>1983 में जब भारत ने विश्वकप जीता तो एशिया में क्रिकेट को लेकर एक बड़ा बदलाव आया. इससे पहले इस खेल में वेस्टइंडीज, ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड का ही वर्चस्व था. ये बात अलग थी कि जिन अंग्रेजों से भारतीयों ने क्रिकेट खेलना सीखा था, उनसे कई साल पहले विश्वकप जीत लिया. भारत के विश्वकप जीतने के 10 साल बाद 1992 में पाकिस्तान ने ये खिताब अपने नाम कर लिया और 1996 में श्रीलंका ने ऑस्ट्रेलिया को हराकर विश्वकप जीता. इस 1983 से लेकर एशिया में कई नामचीन खिलाड़ी आए जिन्होंने अपने-अपने समय क्रिकेट पर राज किया. बात भारत की करें तो सचिन तेंदुलकर, सौरव गांगुली, राहुल द्रविड़, वीवीएस लक्ष्मण, अनिल कुंबले, जवागल श्रीनाथ जैसे खिलाड़ी हुई. इसकी बाद की पीढ़ी में महेंद्र सिंह धोनी, गौतम गंभीर, हरभजन सिंह, विराट कोहली और रोहित शर्मा जैसे खिलाड़ी अपना परचम लहरा रहे हैं.</p>
<p>पाकिस्तान में <a title="इमरान खान" href="https://www.toplivenews.in/topic/imran-khan" data-type="interlinkingkeywords">इमरान खान</a>, वसीम अकरम, वकार यूनूस, सईद अनवर, इंजमाम-उल-हक, जावेद मियांदाद, सईद अफरीदी और शोएब अख्तर जैसे खिलाड़ी आए. बात करें श्रीलंका की तो सनत जयसूर्या की बल्लेबाजी देखने के लिए आज भी लोग यूट्यूब पर सर्च करते हैं. इसके साथ ही अर्जुन रणतुंगा, मुथैया मुरलीधरन, चमिंडा वास, कालूवितरणा, कुमार संगकारा, अरविंदा डिसिल्वा जैसे महान बल्लेबाज रहे हैं. इसके साथ ही अब बंग्लादेश की भी किक्रेट टीम अंतरराष्ट्रीय जगत पर अपनी उपस्थिति कई बार दर्ज करा चुकी है.</p>