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Bombay HC Dismisses PIL Against Kiren Rijiju And Jagdeep Dhankhar Over Remarks Against Judiciary Says Fair Criticism Permissible

Bombay HC on Kiren Rijiju and Jagdeep Dhankhar Remarks: बॉम्बे हाई कोर्ट (Bombay High Court) ने केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू (Kiren Rijiju) और उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ (Jagdeep Dhankhar) के खिलाफ दायर की गई एक जनहित याचिका को खारिज करते हुए कहा कि अदालत के फैसले की निष्पक्ष आलोचना की अनुमति है. 

बॉम्बे लॉयर्स एसोसिएशन (BLA) ने केंद्रीय मंत्री और उपराष्ट्रपति के खिलाफ हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी. इसमें किरेन रिजिजू और उपराष्ट्रपति धनखड़ पर न्यायपालिका के खिलाफ टिप्पणी करने का आरोप लगाया गया था. 9 फरवरी को कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश एसवी गंगापुरवाला और न्यायमूर्ति संदीप मार्ने की खंडपीठ ने जनहित याचिका खारिज कर दी थी लेकिन बेंच के आदेश की डिटेल मंगलवार (21 फरवरी) को उपलब्ध कराई गई. 

क्या था किरेन रिजिजू और जगदीप धनखड़ के खिलाफ आरोप?

बीएलएन ने अपनी याचिका में कहा था कि केंद्रीय मंत्री रिजिजू और उपराष्ट्रपति धनखड़ ने सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जजों की नियुक्ति से संबंधित न्यायपालिका और कॉलेजियम प्रणाली के खिलाफ टिप्पणियां कीं. वकीलों के संघ की जनहित याचिका में रिजिजू और धनखड़ को उनके संवैधानिक पदों से इस आधार पर अयोग्य ठहराने की मांग की गई थी कि उनकी टिप्पणियों ने सुप्रीम कोर्ट और संविधान में जनता के विश्वास को हिला दिया है.

बॉम्बे हाई कोर्ट ने विस्तृत आदेश में क्या कहा?

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, विस्तृत आदेश में बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा कि संवैधानिक अधिकारियों और संवैधानिक पदों पर आसीन लोगों समेत हर नागरिक को संविधान का सम्मान और पालन करना चाहिए. अदालत ने कहा कि जनहित याचिका लोगों के हित की सुरक्षा के लिए दायर की जाती है और लोगों के साथ गलत न हो या चोट न पहुंचे, इस निवारण के लिए इसका उपयोग किया जाना चाहिए और यह पब्लिसिटी के लिए नहीं हो सकती है.”

बेंच ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की विश्वसनीयता आसमान छूती है. कोर्ट ने आदेश में कहा, ”यह (एससी की विश्वसनीयता) लोगों के बयानों से नष्ट या प्रभावित नहीं हो सकती है. भारत का संविधान सर्वोच्च और पवित्र है. भारत का हर नागरिक संविधान से बंधा है और उससे संवैधानिक मूल्यों का पालन करने की अपेक्षा की जाती है.” बेंच ने कहा, ”संवैधानिक अधिकारियों और संवैधानिक पद धारण करने वाले व्यक्तियों समेत संवैधानिक संस्थाओं का सभी को सम्मान करना चाहिए.”

‘निष्पक्ष आलोचना की अनुमति है’

हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, ”याचिकाकर्ता की ओर से सुझाए गए तरीके से संवैधानिक पद पर आसीन अधिकारियों को नहीं हटाया जा सकता है. फैसले की निष्पक्ष आलोचना की अनुमति है. कोई संदेह नहीं कि संविधान का पालन करना हर नागरिक का मौलिक कर्तव्य है. कानून के गौरव का सम्मान करना होगा.”

कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने हाल ही में कथित तौर पर कहा था कि हायर जुडिशियरी में जजों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली अस्पष्ट है और पारदर्शी नहीं है. उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ कथित तौर पर 1973 के केशवानंद भारती मामले के ऐतिहासिक फैसले पर सवाल उठाया था.

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