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BJP के लिए सम्भल कितना जरूरी? कल्कि धाम में हिंदुत्व एजेंडे के जरिए पश्चिमी UP पर नजर | Sambhal Constituency importance bjp PM narendra modi visit moradabad division lok sabha elections 2024

BJP के लिए सम्भल कितना जरूरी? कल्कि धाम में हिंदुत्व एजेंडे के जरिए पश्चिमी UP पर नजर

पीएम मोदी ने किया कल्कि धाम का शिलान्यास

भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के कार्यकर्ता से लेकर पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष तक मिशन 400 में लग गए हैं. इस साल होने वाले लोकसभा चुनावों के लिए पीएम मोदी की तरफ से एनडीए 400 पार और बीजेपी अकेले 370 पार का नारा दिया गया है. पार्टी अब इस नारे को हकीकत में बदलने में की जुट गई है. बीजेपी की तरफ से यूपी में भी 80 में 80 का नारा दिया गया है, लेकिन यह उसके लिए आसान नहीं है क्योंकि इसी यूपी में मैनपुरी सीट भी है, जहां पर बीजेपी ने आज तक चुनाव नहीं जीता, यहीं पर संभल सीट भी है, जहां सिर्फ एक बार ही कमल खिल सका है.

बीते दो दशक के चुनाव नतीजे पर गौर करें तो साफ हो जाता है कि संभल में बीजेपी की हालत पतली रही है और यह सीट समाजवादी पार्टी तथा बहुजन समाज पार्टी का गढ़ रहा है. मुलायम सिंह यादव जैसे बड़े नेताओं ने भी संसद पहुंचने के लिए संभल को ही चुना था. मुरादाबाद मंडल के अंदर 6 संसदीय सीटें संभल, बिजनौर, नगीना, मुरादाबाद, रामपुर और अमरोहा आती हैं और पिछले लोकसभा चुनावों में बीजेपी को इन सभी की सभी 6 सीटों पर करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा था.

MY समीकरण बीजेपी के लिए चुनौती

संभल मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र है, जहां इस वक्त समाजवादी पार्टी के सांसद शफीकुर्रहमान बर्क है और इस बार भी उन्हें ही समाजवादी पार्टी ने कैंडिडेट बनाया है. मुस्लिम आबादी की अगर आप बात करेंगे वोटर्स साढ़े आठ लाख है. सवर्ण और पिछड़ों को अगर मिला दें तो यह 5 लाख है. यहां पर दलित आबादी 2.5 लाख और यादव डेढ़ लाख के करीब हैं. यादव और मुस्लिम यानी कि एमवाई समीकरण यहां पर मजबूत है और इसीलिए यह सीट भारतीय जनता पार्टी के लिए चुनौतीपूर्ण सीट रही है.

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संभल से कभी मुलायम सिंह यादव भी चुनावी ताल ठोक चुके हैं और वह दो बार जीते भी हैं. इस सीट का प्रभाव न सिर्फ संभल बल्कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के उन इलाकों पर पड़ता है, जहां मुस्लिम आबादी निर्णायक भूमिका में रही है. खासकर मुरादाबाद रीजन की जो सीट है वहां समाजवादी पार्टी जीत दर्ज करती रही है, भारतीय जनता पार्टी को 2019 में हर का सामना करना पड़ा था.

कब-किसको मिली संभल सीट

बीजेपी की नजर न केवल संभल बल्कि पूरे मुरादाबाद मंडल पर है, जिसमें मुरादाबाद, बिजनौर, अमरोहा, संभल और रामपुर की लोकसभा सीटें शामिल हैं. 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी सभी पांच सीटों पर एसपी-बीएसपी गठबंधन के आगे हार गई थी. संभल का प्रतिनिधित्व सपा के शफीकुर्रहमान बर्क करते हैं, जो चार बार पूर्व विधायक और पांच बार सांसद रह चुके हैं. 1977 में बनी संभल सीट पर जनता पार्टी की शांति देवी ने पहली बार चुनाव जीता, लेकिन 1980 हुए चुनावों में यह सीट कांग्रेस (बिजेंद्र पाल सिंह) के पाले में चली गई थी.

1984 में शांति देवी कांग्रेस के टिकट से चुनाव लड़ीं और जीतने में कामयाब हुईं. 1989 और 1991 में दो बार इस सीट पर जनता दल के श्रीपाल सिंह यादव ने बाजी मारी थी, लेकिन 1996 में बीएसपी से टिकट पाकर डीपी यादव ने इस पर कब्जा जमा लिया. हालांकि 1998 और 1999 में सपा प्रमुख रहे मुलायम सिंह यादव यहां से चुनाव लड़े और जीते भी. उनके बाद 2004 के चुनाव में रामगोपाल यादव इस सीट से जीते.

हालांकि 2009 के संसदीय चुनाव में बीएसपी ने शफीकुर्रहमान बर्क ने सपा से इस सीट को छीन लिया. लेकिन 2014 में पहली बार बीजेपी ने इस सीट पर एंट्री मारी और उसके उम्मीदवार सत्यपाल सिंह सैनी ने सपा के टिकट से लड़े बर्क को हरा दिया. लेकिन 2019 के चुनाव में बीजेपी ने यहां से अपना उम्मीदवार बदल दिया और इस बार परमेश्वर लाल सैनी को टिकट दिया, लेकिन वो हार गए. सपा के शफीकुर्रहमान बर्क ने पौने 2 लाख मतों के अंतर से हरा दिया.

इसके साथ ही 2022 में हुए विधानसभा चुनावों में संभल की पांच में से चार विधानसभा सीटें (कुंदरकी, बिलारी, असौली और संभल) समाजवादी पार्टी ने जीतीं. बीजेपी केवल चंदौसी सीट ही जीत सकी, जहां पार्टी उम्मीदवार गुलाब देवी ने सपा की विमलेश कुमारी को 35,367 वोटों से हराया था. गुलाब देवी वर्तमान में माध्यमिक शिक्षा राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) भी हैं.

PM मोदी का संभल दौरा जरूरी क्यों?

2019 लोकसभा चुनाव में बीजेपी के खिलाफ समाजवादी पार्टी, बीएसपी और आरएलडी का गठबंधन था, जिस कारण मुरादाबाद मंडल की सभी छह सीटें इस गठबंधन ने जीत ली थीं. इनमें से तीन समाजवादी पार्टी के हिस्से में आई थीं, जहां पर मुरादाबाद से डॉक्टर एसटी हसन, संभल से शफीकुर्र रहमान बर्क और रामपुर से समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता आजम खान चुनाव जीते थे. जबकि शेष तीन लोकसभा सीटों पर बीएसपी के उम्मीदवार जीते थे. अमरोहा से बीएसपी के दानिश अली चुनाव जीते, जिन्हें कुछ ही महीनों पहले मायावती ने पार्टी से बाहर कर दिया. अब वह कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ना चाह रहे हैं. इसी तरह बिजनौर लोकसभा सीट से मलूक नागर और नगीना (सुरक्षित संसदीय सीट) पर बीएसपी के गिरीश चंद्र जाटव की जीत हुई.

प्रधानमंत्री मोदी 2024 के चुनाव को लेकर पूरी तरह से सचेत हैं. राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद कल्किधाम मंदिर का शिलान्यास कर वह अयोध्या से संभल तक सनातन रेखा खींचने में जुटे हैं. पीएम अवध से पश्चिमी उत्तर प्रदेश तक 80 में 80 जीत की प्लानिंग को मजबूत भी कर रहे हैं. राम मंदिर के बाद कल्किधाम जाकर पीएम मोदी ने चुनावों से पहले हिंदुत्व एजेंडे को धार दी है. यहां से उन्होंने हिंदू वोटर्स को मैसेज देने के साथ-साथ गांधी परिवार पर जमकर हमला भी बोला.

मुस्लिम आबादी 30 फीसदी से अधिक

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में संभल के अलावा बिजनौर, मुरादाबाद, रामपुर, अमरोहा, मेरठ, मुजफ्फरनगर, कैराना, सहारनपुर, नगीना और बरेली ऐसी सीटें हैं, जहां पर मुस्लिम आबादी 30% से ज्यादा है. यहां पर मुस्लिम वोटर्स जीत और हार तय करते हैं और निर्णायक भूमिका में होते हैं. 2014 के चुनाव में संभल समेत इन सभी सीटों पर कमल खिला था, लेकिन 2019 के चुनाव में मुरादाबाद, रामपुर, बिजनौर, अमरोहा, सहारनपुर और नगीना में बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा था.

इस बार पीएम मोदी ने बीजेपी के लिए 370 का टारगेट सेट किया है, जिसे पूरा करने के लिए बीजेपी को 2014 की तरह 2024 में भी इन सीटों पर कमल खिलाना होगा और इसकी जिम्मेदारी खुद पीएम मोदी ने उठाई है. साथ ही बीजेपी इस बार जयंत चौधरी की पार्टी आरएलडी के साथ गठबंधन करने में लगी है.

बीजेपी का इरादा मुरादाबाद मंडल की सभी लोकसभा सीटों पर कब्जा जमाने का है. बीएसपी के अकेले लड़ने से विपक्ष के वोटों के बंटवारे का फायदा भी बीजेपी को हो सकता है. प्रधानमंत्री मोदी के दौरे से यहां पर बीजेपी कार्यकर्ताओं का जोश हाई है और पार्टी को उम्मीद है कि पीएम का दौरा लकी साबित हो सकता है.

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