Akhilesh yadav samajwadi party up politics congress rld sbsp mahan dal lok sabha election 2024 | कब तक प्रयोग करते रहेंगे अखिलेश? जिनसे मिला लाभ उनको ही नहीं रख पाए साथ


समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव. (फाइल फोटो)
उत्तर प्रदेश की सियासत में बीजेपी को मात देने के लिए सपा प्रमुख अखिलेश यादव एक के बाद एक सियासी प्रयोग कर रहे हैं. कांग्रेस और बसपा के साथ गठबंधन करने का दांव सपा के लिए मुफीद साबित नहीं हुआ तो अखिलेश ने ओबीसी आधार वाले छोटे-छोटे दलों के साथ हाथ मिलाने से पार्टी की सिर्फ सीटें ही नहीं बढ़ी बल्कि वोट शेयर में इजाफा हुआ. सियासी लाभ के बाद भी सपा ने लोकसभा चुनाव से पहले सभी पुराने सहयोगियों का समर्थन खो दिया है और कांग्रेस के साथ दोबारा से हाथ मिलाया है तो महान दल के साथ भी दोस्ती हो गई है.
बता दें कि 2022 यूपी चुनाव में सपा ने जिन छोटे दलों के साथ गठबंधन किया था, उनका OBC वर्ग के बीच आधार है. आरएलडी का जाट, सुभासपा का राजभर, जनवादी सोशलिस्ट पार्टी का नोनिया, अपना दल (कमेरावादी) का कुर्मी और महान दल का मौर्य समाज के बीच सियासी आधार है. इन सभी पार्टियों के साथ मिलकर सपा विधानसभा चुनाव लड़ी थी. राज्य की 403 सीटों में से सपा 32 फीसदी वोट शेयर के साथ 111 सीटें जीतीं जबकि आरएलडी को 8 और सुभासपा को 6 सीटें मिलीं थी. अब तक के इतिहास में सपा पहली बार 30 फीसदी के पार वोट हासिल कर सकी थी.
सुभासपा ने भी छोड़ा अखिलेश का साथ
सपा को तब बड़ा झटका लगा जब पश्चिमी यूपी में जाटों के बीच आधार रखने वाली जयंत चौधरी की अगुवाई वाली आरएलडी ने फरवरी में बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए में शामिल हो गई. सुभासपा ने पिछले साल एनडीए में शामिल हुई थी. 2022 चुनाव के बाद ही सुभासपा के प्रमुख ओम प्रकाश राजभर ने सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव की आलोचना शुरू कर दी थी और बाद में गठबंधन तोड़ लिया. पूर्वांचल बेल्ट में राजभर का अपना एक वोटबैंक है, जिसके चलते ही आजमगढ़, मऊ, गाजीपुर, अंबेडकरनगर जैसे जिले में सपा का पल्ला भारी रहा था.
ये भी पढ़ें
अपना दल (के) के साथ भी टूट गया गठबंधन
दिवंगत कुर्मी नेता सोनेलाल पटेल के द्वारा स्थापित अपना दल (के) के साथ भी गठबंधन टूट गया. अपना दल की प्रमुख कृष्णा पटेल और
उनकी बेटी पल्लवी पटेल ने असदुद्दीन ओवैसी के साथ मिलकर नया मोर्चा बना लिया है. इसी तरह जनवादी पार्टी के नेता संजय चौहान ने भी अकेले चुनावी मैदान में उतरने का ऐलान कर दिया है. संजय चौहान घोसी से चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन सपा इस सीट से पार्टी के वरिष्ठ नेता राजीव राय को मैदान में उतारा है. इसके चलते ही संजय चौहान ने गठबंधन तोड़ लिया. महान दल के प्रमुख केशव देव मौर्य का शाक्य, सैनी, कुशवाह और मौर्य जैसे ओबीसी समूहों के बीच आधार है. सपा का कहना है कि इनका अपना कोई जनाधार नहीं है बस सपा के साथ मिलकर अपनी बार्गेनिंग पावर बढ़ा रहे हैं.
सपा ने अधिकांश छोटे दलों का खोया समर्थन
लोकसभा चुनाव से पहले सपा ने ओबीसी के आधार वाले अधिकांश छोटे दलों का समर्थन खो दिया है. महान दल ने दोबारा समर्थन सपा को किया है, लेकिन औपचारिक रूप से गठबंधन का हिस्सा नहीं है. फिलहाल यूपी में सपा का कांग्रेस के साथ ही गठबंधन है. यूपी की 80 में से 63 सीट पर सपा और 17 सीट पर कांग्रेस चुनाव लड़ रही है. अखिलेश ने अपने कोटे से एक सीट टीएमसी को दी है. कांग्रेस के साथ हाथ मिलाकर सपा ने मुस्लिम वोटों के बिखराव के खतरे को टाला है, लेकिन कोई नया वोटबैंक जुड़ नहीं रहा है.
चंद्रशेखर आजाद के साथ भी नहीं बनी बात
भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर आजाद के नेतृत्व वाली आजाद समाज पार्टी के साथ सपा की बातचीत भी विफल रही. पश्चिमी यूपी में दलितों पर खासा प्रभाव रखने वाले चंद्रशेखर आजाद ने खुद चुनाव लड़ने के लिए नगीन सीट की मांग की थी, लेकिन सपा उन्हें नगीना के बजाय आगरा और बुलंदशहर सीट देने की ऑफर दिया था. इस पर दोनों की बात नहीं बन सकी जबकि चंद्रशेखर के आने से दलित वोटों का फायदा हो सकता था.
UP में बीजेपी को मात नहीं दी जा सकती
वरिष्ठ पत्रकार सैयद कासिम कहते हैं कि यूपी की सियासत में यादव-मुस्लिम समुदाय के वोटों के दम पर फिलहाल बीजेपी को मात नहीं दी जा सकती है. सपा ने कांग्रेस के साथ सिर्फ मुस्लिम वोटबैंक को जोड़े रखने के लिए गठबंधन किया है, क्योंकि लोकसभा के चुनाव में
मुसलमानों की पहली पसंद कांग्रेस रही है. राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा से मुस्लिमों का झुकाव कांग्रेस की तरफ बढ़ा है. इसी वजह से सपा ने कांग्रेस के साथ हाथ मिलाया है, लेकिन सूबे में बदायूं, आजमगढ़, फिरोजाबाद लोकसभा सीट के अलावा किसी भी सीट पर मुस्लिम-यादव कारगर नहीं है.
अखिलेश यादव ने कांग्रेस के साथ भले गठबंधन किया हो, लेकिन छोटे दलों के सहारे करीब आए गैर-यादव ओबीसी समाज के वोटों को वो अब किसी भी सूरत में अपने से दूर नहीं जाने देना चाहते हैं. इसीलिए टिकट में ओबीसी नेताओं को ही तवज्जे दी है, जिसमें खासकर कुर्मी समुदाय के सबसे ज्यादा प्रत्याशी है और उसके बाद मौर्य-शाक्य हैं. इसके अलावा गुर्जर, मल्लाह सहित अन्य ओबीसी जातियों के प्रत्याशी उतारे हैं.
अखिलेश यादव की आत्म निर्भर बनने की रणनीति
माना जा रहा है कि अखिलेश यादव सूबे में अब छोटे-छोटे दलों की बैसाखी का सहारा लेने के बजाय ओबीसी समुदाय पर आत्म निर्भर बनने की रणनीति है. मायावती के साथ गठबंधन टूटने के बाद अखिलेश यादव ने बसपा के तमाम दलित व अतिपिछड़े वर्ग के नेताओं को अपने साथ मिलाया था. इस फॉर्मूले पर ओम प्रकाश राजभर की पार्टी के कुछ नेताओं को सपा में शामिल कराया है और अब पूरा फोकस कुर्मी समुदाय के लोगों पर है. देखना है कि अखिलेश यादव का यह सियासी प्रयोग 2024 के चुनाव में क्या बीजेपी के खिलाफ सफल हो पाएगी?