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Gaya: बिहार के ऐतिहासिक और धार्मिक शहर गया को अब नया नाम मिल गया है. अब गया नहीं बल्कि ये शहर ‘गया जी’ के नाम से जाना जाएगा. गया की भूमि को मोक्ष की धरती भी कहा जाता है. भारत में गया ही एक ऐसा स्थान है जहां पूरे साल श्राद्ध किया जाता है.

यहां हर साल लाखों की संख्या में लोग अपने पितरों के मुक्ति और मोक्ष के कामना के लिए गया में पिंडदान करते हैं. गया में पिडंदान से लेकर मोक्ष तक, आखिर यहां श्राद्ध परंपरा का क्यों है इतना महत्व आइए जानते हैं.

गया में क्यों किया जाता है श्राद्ध ?

‘श्राद्धारंभे गयां ध्यात्वा ध्यात्वा देवं गदाधरम्। स्वपितृन् मनसा ध्यात्वा तत: श्राद्धं समाचरेत्।।’

अर्थात – श्राद्ध चाहे घर में हो या प्रयाग, काशी, पुष्कर, नैमिषारण्य या गंगा किनारे ही क्यों न किया जाए, श्राद्ध का आरंभ ही गयाधाम और गया के प्रधान देवता भगवान गदाधर का स्मरण कर किया जाता है.

गया कि धरती पर खुद माता सीता ने फ्लगु नदीं के तट पर बालू का पिंड राजा दशरथ को दिया था. मान्यता है कि उनके इस पिंड के बाद ही राजा दशरथ को स्वर्ग की प्राप्ति हुई थी. महाभारत काल में पांडवों ने भी इसी स्थान पर श्राद्ध कर्म किया था.

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, सर्वपितृ अमावस्या के दिन गया में पिंडदान करने से 108 कुल और 7 पीढ़ियों का उद्धार हो जाता है और पितरों की आत्मा को शांति मिलती है.

पुराणों में गया का जिक्र

  • अग्निपुराण इस रूप में देता है कि गया में साक्षात भगवान विष्णु ही पितृदेव के रूप में विराजमान हैं.
  • वायुपुराण के अनुसार जो गया के लिए घर से प्रस्थान मात्र करता है वह गमनरूपी प्रत्येक पद पितरों के लिए स्वर्गगमन की सीढ़ी बन जाता है. श्राद्ध करने की दृष्टि से पुत्र को गया में आया देखकर पितृगण अत्यंत प्रसन्न होकर उत्सव मनाने लगते हैं.
  • कूर्मपुराण के ऋषि सस्वर उद्घोष करते हैं कि वे मनुष्य धन्य हैं जो गया में पिंडदान करते हैं. वे माता-पिता दोनों के कुल की सात पीढ़ियों का उद्धार कर स्वयं भी परम गति को प्राप्त करते हैं.

असुर के शरीर पर बसा है गया तीर्थ

गयासुर नामक एक असुर ने कड़ी तपस्या कर ब्रह्माजी से वरदान मांगा था कि उसका शरीर पवित्र हो जाए और लोग उसके दर्शन कर पाप मुक्त हो जाएं. इस वरदान के बाद लोगों में भय खत्म हो गया और पाप करने लगे. पाप करने के बाद वह गयासुर के दर्शन करते और पाप मुक्त हो जाते थे. ऐसा होने स स्वर्ग और नरक का संतुलन बिगड़ने लगा. बड़े बड़े पापी भी स्वर्ग पहुंचने लगे.

इन सबसे बचने के लिए देवतागण गयासुर के पास पहुंचे और यज्ञ के लिए पवित्र स्थान की मांग की. गयासुर ने अपना शरीर ही देवताओं को यज्ञ के लिए दे दिया और कहा कि आप मेरे ऊपर ही यज्ञ करें. जब गयासुर लेटा तो उसका शरीर पांच कोस में फैल गया और यही पांच कोस आगे चलकर गया बन गया. गयासुर के पुण्य प्रभाव से वह स्थान तीर्थ के रूप में जाना गया. गयासुर के विशुद्ध शरीर में ब्रह्मा, जनार्दन, शिव तथा प्रपितामह निवास करते हैं इसलिए पिंडदान व श्राद्ध कर्म के लिए इस स्थान को उत्तम माना गया है.

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Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि ABPLive.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.

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