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एक वोट की कीमत तुम क्या जानो….जीवन भर उस दर्द से नहीं उबरे अटल जी, CM बनने से चूक गए थे सीपी जोशी | Lok Sabha Elections 2024 value of one vote defeat and victory Atal Vihari Vajpayee CP Joshi lost become CM

एक वोट की कीमत तुम क्या जानो....जीवन भर उस दर्द से नहीं उबरे अटल जी, CM बनने से चूक गए थे सीपी जोशी

एक वोट की कीमत

लोकतंत्र के महापर्व में हरेक वोट कीमती होता है. विश्वास ना हो तो राजस्थान कांग्रेस के दिग्गज नेता सीपी जोशी से पूछ लीजिए. साल 2008 में वह नाथद्वारा विधानसभा सीट पर महज एक वोट से जीती बाजी हार गए थे. सीपी जोशी ही क्यों, इस दर्द से देश के प्रधानमंत्री रहे अटल बिहारी वाजपेयी को भी गुजरना पड़ा था. महज एक वोट से उनकी सरकार गिर गई थी. इस लिए चूकिए नहीं, वोट जरूर कीजिए. अन्यथा यह बहुत संभव है कि आपका पसंदीदा उम्मीदवार संसद की सीढ़ियां चढ़ने से वंचित रह जाए.

आइए, पूरा माजरा समझने के लिए शुरू से शुरू करते हैं. वह साल 2008 का था. उस समय राजस्थान में विधानसभा चुनाव हो रहे थे. नाथद्वारा विधानसभा सीट से कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी मैदान में थे. उनके मुकाबले में बीजेपी के कल्याण सिंह चौहान चुनाव लड़ रहे थे. इस चुनाव में कल्याण सिंह चौहान को कुल 62,216 वोट मिले थे, वहीं सीपी जोशी को 62,215 वोट मिले और वह एक वोट से हार गए थे. इस हार से सीपी जोशी का मुख्यमंत्री बनने का सपना टूट गया था.

कर्नाटक में भी एक वोट से हुई थी हार-जीत

यही स्थिति साल 2004 में जेडीएस नेता एआर कृष्णमूर्ति के साथ बनी थी. उस समय हुए सांथेमरहल्ली विधानसभा सीट पर वह भी कांग्रेस के आर ध्रुव नारायण से महज एक वोट से हार गए थे. इस चुनाव में कृष्णमूर्ति को 40751 वोट मिले थे. वहीं 40752 वोट पाकर ध्रुवनारायण विजयी हुए थे. एक वोट की कीमत पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जीवन भर नहीं भूल पाए. दरअसल, संसद में फ्लोर टेस्ट के दौरान इसी एक वोट की वजह से उनकी 13 महीने की सरकार गिर गई थी.

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गिर गई थी अटल सरकार

उस समय फ्लोर टेस्ट से ठीक पहले तक उन्हें उम्मीद थी कि सरकार बच जाएगी, लेकिन जब वोटिंग हुई तो सरकार के पक्ष में 269 वोट पड़े. वहीं विरोध में 270 वोट पड़ गए. इससे सरकार गिर गई थी. इस हार के बाद सदन में उनकी आंखों से आंसू छलछला पड़े थे. बाद के जीवन में उन्होंने इस प्रसंग को कई बार सार्वजनिक तौर पर कहा था. यह तो हुई देश की बात, साल 1875 में इसी एक वोट की वजह से फ्रांस में राजशाही खत्म हो गई थी और फ्रांस एक लोकतांत्रिक देश बन सका था.

एडोल्फ हिटलर भी एक वोट से जीते

इसी एक वोट की वजह से साल 1923 में एडोल्फ हिटलर की जीत हुई और वह जर्मनी में नाजीदल के मुखिया बन सके थे. भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में वोटों की कीमत बताने के लिए एक और बड़ा उदाहरण है. यह मामला साल 1957 में देश में हुए दूसरे लोकसभा चुनाव का है. इस चुनाव में मैनपुरी लोकसभा सीट से निर्दलीय प्रत्याशी शंकर लाल मैदान में थे. उन्हें खुद उनके पत्नी बच्चों ने भी वोट नहीं दिया था. यहां तक कि उनका अपना वोट भी नहीं मिला. उनका वोट गिनती के दौरान आमान्य हो गया था. एक वोट से हार जीत के कुछ गिने चुने ही मामले हैं.

तीन वोट से हुई हार-जीत

देश के चुनावी इतिहास में दर्जनों की संख्या में ऐसे भी मामले हैं, जिनमें प्रत्याशियों की हार जीत का फैसला दस या इससे भी कम वोटों के अंतर से हुआ है. सबसे ताजा उदाहरण मिजोरम का है. यहां साल 2018 में हुए विधानसभा चुनावों में तुइवावल विधानसभा सीट पर एमएनएफ के लालचंदामा राल्ते महज तीन वोटों से चुनाव जीत गए थे. बड़ी बात यह कि उन्होंने कांग्रेस पार्टी के निर्वतमान विधायक आरएल पियानमाविया को हराया था. इस तरह के उदाहरण, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र में भरे पड़े हैं.

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