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Nishkramana Sanskar Importance For Child Immunity Intelligence Know Vidhi Niyam

Nishkramana Sanskar: जन्म से लेकर मृत्यु तक 16 संस्कार किए जाते हैं. इनमें छठा संस्कार निष्क्रमण संस्कार कहलाता है. ये नामकरण संस्कार के बाद किया जाता है. निष्क्रमण संस्कार को सूरज पूजा के नाम से भी जाना जाता है.

इसमें बच्चे को सूर्य देव के दर्शन कराए जाते हैं, माता बच्चे को साथ लेकर विधि विधान से सूर्य देव की पूजा करती है. निष्क्रमण संस्कार से बच्चे के बल, बुद्धि और आयु में वृद्धि के लिए जरुरी माना गया है. आइए जानते हैं निष्क्रमण संस्कार कब और कैसे करें, इसका महत्व.

निष्क्रमण संस्कार का महत्व (Nishkramana Sanskar Significance)

सनातन धर्म के अनुसार किसी भी मनुष्य का निर्माण पांच तत्वों से मिलकर होता है जो निम्न है- पृथ्वी, आकाश ,जल, अग्नि तथा वायु. इन पांचों ही तत्वों की मनुष्य के शरीर में मात्रा सही रूप में बनी रहे तथा इनकी उसके जीवन में कभी कोई कमी नहीं हो इसलिए निष्क्रमण संस्कार किया जाता है.

“निष्क्रमणादायुषो वृद्धिरप्युदृष्टा मनीषिभि:” – शास्त्रों के अनुसार शिशु की बल, बुद्धि और रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ने के लिए निष्क्रमण संस्कार जरुरी माना गया है.

निष्क्रमण संस्कार के लाभ (Nishkramana Sanskar Benefit)

जन्म के बाद बच्चे को संक्रमण से बचाने के लिए 6 माह तक घर में रखा जाता है. 6 महीने तक उसके शरीर में कई बदलाव आते हैं, वह नए वातावरण से रूबरू होने में समक्ष हो जाता है. ऐसें निष्क्रमण संस्कार के दौरान बच्चे को घर से बाहर निकाल कर सूर्य, वायु तथा आकाश के दर्शन करवाए जाते हैं और ताकि वह बाहरी दुनिया के वातावरण से लड़ने में सक्षम हो जाए.

निष्क्रमण संस्कार की विधि (Nishkramana Sanskar Vidhi)

निष्क्रमण संस्कार में सूर्य-चंद्रमा समेत अन्य देवी-देवताओं का पूजन किया जाता है. इस दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान के बाद बच्चे की माता जल में रोली, गुड़, लालपुष्प मिलाकर सूर्य देव को अर्घ्य दें. बच्चे को सूर्य देव के दर्शन कराएं. फिर गणेश जी, गाय, सूर्यदेव, अपने पितरों, कुलदेवताओं को मीठे का भोग लगाएं. चंद्रोदय के समय बच्चे को चंद्रमा के दर्शन कराएं. अर्थवेद में इस संस्कार से संबंधित एक मंत्र है जिसका वर्णन किया गया है. पूजा के दौरान उसका जाप करें.

शिवे ते स्तां द्यावापृथिवी असंतापे अभिश्रियौ।

शं ते सूर्य आ तपतुशं वातो वातु ते हृदे।

शिवा अभि क्षरन्तु त्वापो दिव्या: पयस्वती:।।

अर्थात् – निष्क्रमण संस्कार के समय देवलोक से लेकर भू लोक तक कल्याणकारी, सुखद व शोभा देने वाला रहे. शिशु के लिए सूर्य का प्रकाश कल्याणकारी हो व शिशु के हृद्य में स्वच्छ वायु का संचार हो. पवित्र गंगा यमुना आदि नदियों का जल भी तुम्हारा कल्याण करें.

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