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Same Sex Marriage Supreme Court Ask Central Government Social Security Works Without Law ANN | Same Sex Marriage: ‘समलैंगिक शादी को मान्यता दिए बिना क्या…’

Same Sex Marriage: समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने पर सुनवाई के छठे दिन सुप्रीम कोर्ट का रुख कुछ नर्म नज़र आया. कोर्ट ने माना कि यह विषय संसद के अधिकार क्षेत्र में आता है. कोर्ट ने केंद्र सरकार की इस दलील को भी स्वीकार किया कि ऐसी शादी को मान्यता देने से कई दूसरे कानूनों पर अमल मुश्किल हो जाएगा.

 5 जजों की बेंच ने सरकार से पूछा कि क्या वह समलैंगिक जोड़ों को सामाजिक सुरक्षा देने के लिए कोई कानून बनाना चाहेगी.  जजों का मानना था कि पति-पत्नी की तरह साथ रह रहे समलैंगिक जोड़ों को साझा बैंक अकाउंट खोलने जैसी सुविधा दी जानी चाहिए। 3 मई को मामले पर अगली सुनवाई होगी.

सामाजिक सुरक्षा का सवाल
2018 में सुप्रीम कोर्ट ने दो वयस्कों के बीच आपसी सहमति से बने समलैंगिक संबंधों को अपराध के दायरे से बाहर किया था. उसके बाद से समलैंगक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग जोर पकड़ती गई. इसके पीछे एक प्रमुख दलील यह भी है कि समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता न होने के चलते ऐसे जोड़े बहुत से कानूनी अधिकार हासिल नहीं कर पा रहे हैं. वह जिस पार्टनर के साथ जिंदगी बिता रहे हैं, उसके नाम वसीयत नहीं कर सकते, उसे अपने बैंक अकाउंट में नॉमिनी नहीं बना सकते, उसका जीवन बीमा नहीं करा सकते. 

स्पेशल मैरिज एक्ट में बदलाव की मांग
5 दिन चली सुनवाई में याचिकाकर्ता पक्ष की तरफ से विस्तृत दलीलें रखी गईं। यह भी बताया गया कि दुनिया के 34 देशों में सेम सेक्स मैरिज को कानूनी दर्जा दिया गया है। याचिकाकर्ताओं ने दलील दी कि स्पेशल मैरिज एक्ट की व्याख्या में हल्के बदलाव से यह समस्या हल हो सकती है। अलग-अलग धर्म और जाति के लोगों को शादी की सुविधा देने के लिए बने इस कानून की धारा 4 में दो लोगों की शादी की बात लिखी गई है। कोर्ट यह कह सकता है कि इसमें समलैंगिक लोग भी शामिल हैं।

‘160 कानूनों पर पड़ेगा असर’
इसका जवाब देते हुए केंद्र सरकार ने सुनवाई का कड़ा विरोध किया है. केंद्र ने कहा है कि पूरे समाज पर असर डालने वाले इस विषय पर संसद में चर्चा होनी चाहिए. इस पर राज्यों की भी राय ली जानी चाहिए. सुप्रीम कोर्ट अपनी तरफ से एक नई वैवाहिक संस्था नहीं बना सकता. कल से जारी अपनी दलीलों को आगे बढ़ाते हुए सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने जजों को बताया कि अगर समलैंगिक शादी को कानूनी दर्जा दिया गया तो इससे 160 कानून प्रभावित होंगे.

 मेहता ने उदाहरण देते हुए कहा कि एक पिता और माता की संतानों को फुल ब्लड संबंध माना जाता है, जबकि माता या पिता में से कोई एक अगर साझा हों तो उनके बच्चों का संबंध हाफ ब्लड कहा जाता है. अगर 2 लेस्बियन महिलाओं में से एक कृत्रिम तरीके से एक से ज़्यादा बार गर्भधारण करती है, तो उनके बच्चों के आपसी संबंध को कानूनन पारिभाषित करना मुश्किल होगा।

‘क्या समलैंगिक खुद को किसी की बहू कह सकता है?’
तुषार मेहता ने यह भी कहा कि माता या पिता के परिवार में कुछ पीढ़ियों तक शादी न करने की परंपरा हिंदुओं में है. कानूनन इसे सपिंडा मैरिज पर पाबंदी कहा जाता है. इसे स्पेशल मैरिज एक्ट में भी मान्यता दी गई है. इसलिए यह नहीं कहा है सकता कि स्पेशल मैरिज एक्ट धार्मिक कानूनों से बिल्कुल अलग है. उसी तरह कानून में लड़के की शादी की उम्र 21 और लड़की की 18 है. 

समलैंगिक शादी में उम्र को लेकर भी कानून बदलना पड़ेगा। यह कानून भी है कि पति की मृत्यु पर बहू ससुर से गुजारा भत्ता पाने की हकदार है। समलैंगिक जोड़े में से किसी एक की मौत के बाद क्या दूसरा उसके पिता से कह सकता है कि वह बहू है? कोई भी कोर्ट यह कैसे तय कर पाएगा.

‘फिर तो परिवार में शादी की भी उठेगी मांग’
केंद्र के वकील ने आगे कहा, “सूर्यास्त के बाद महिला की गिरफ्तारी न होने का कानून है. समलैंगिक जोड़े में से किसी ने अगर आत्महत्या कर ली और उसे उकसाने का लिए दूसरे की गिरफ्तारी करनी है तो यह कैसे तय होगा कि उसे पुरुष की तरह मानना है या स्त्री की तरह?” सॉलिसीटर जनरल ने यह भी कहा कि आज इंसेस्ट यानी परिवार के लोगों से शारीरिक संबंध और शादी को कानूनन गलत माना जाता है. अगर आज समलैंगिक शादी को मान्यता मिली तो कुछ साल बाद कोई कहेगा कि परिवार में ही शादी करना उसकी पसंद है। इसे भी कानूनी दर्जा मिले.

‘क्या कोई विशेष कानून बनाएंगे?’
चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने इस दलील को स्वीकार किया कि समलैंगिक शादी को मान्यता देने से कई तरह की दिक्कतें आएंगी, लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि साथ रह रहे जोड़ों को किसी भी तरह की सामाजिक सुरक्षा न होना सही नहीं है. जजों ने पूछा कि जिस तरह ट्रांसजेंडर्स (किन्नर) के लिए ट्रांसजेंडर्स एक्ट बनाया गया है, क्या वैसा ही कुछ समलैंगिक लोगों के लिए भी किया जा सकता है?

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