शत्रु संपत्तियां : 'कुबेर के इन खजानों' पर भारत में विवाद की लंबी फेरहिस्त, जानिए क्या है ये मुद्दा?

<p style="text-align: justify;">भारत के दुश्मन और वो भी अपनी संपत्तियां देश में छोड़कर जाएंगे. ऐसा कैसे हो सकता है? लेकिन ऐसा हुआ है. देश में ऐसी संपत्तियां करोड़ो रुपये में हैं और अभी कई मामलों की जांच की जा रही है. मतलब जांच में अगर ये शत्रु संपत्ति निकल आए तो इनका आंकड़ा, कीमतें और बढ़ सकती हैं. आखिर ये शत्रु संपत्ति क्या है जिन पर भारत सरकार कड़ी नजर रखे हुए है.</p>
<p style="text-align: justify;">यहां तक देश के किसी भी नागरिक ने इन पर बेजा कब्जा कर रखा है, या किसी का पड़ोसी इन का इस्तेमाल कर रहा है तो इन सबकी अब खैर नहीं है. प्रधानमंत्री मोदी सरकार अब इस तरह की संपत्तियों को लेकर बड़ा कदम उठाने जा रही है. अब आपको भी उत्सुकता होने लगी होगी कि आखिर ये शत्रु संपत्ति किस बला का नाम है. इस तरह की संपत्ति को लेकर आपके सब सवालों का जवाब यहां एक नजर में है. </p>
<p style="text-align: justify;"><strong>क्या है शत्रु संपत्ति</strong></p>
<p style="text-align: justify;">दुश्मन की जायदाद या शत्रु संपत्ति से मतलब ऐसी संपत्ति से है, जो देश के बंटवारे या फिर भारत-पाकिस्तान, भारत चीन के जंग के वक्त लोगों ने भारत में छोड़ दी और वो लोग स्थायी तौर पर पाकिस्तान, चीन या अन्य देशों में बस गए. साल 1947 में देश का बंटवारा हुआ उस वक्त भी लोग भारत छोड़कर पाकिस्तान गए. इसके साथ ही 1962 के भारत चीन युद्ध, 1965 और 1971 के भारत-पाकिस्तान के युद्ध के वक्त भी भारत में रह रहे कई लोगों ने चीन और पाकिस्तान का रुख किया.</p>
<p style="text-align: justify;">ये लोग इन देशों के नागरिक बन गए या स्थायी तौर पर वहां रह रहे हैं. ऐसे लोगों को भारत सरकार दुश्मन का दर्जा देती है और इनकी छोड़ी गई चल-अचल संपत्ति को शत्रु संपत्ति कहा जाता है. दरअसल भारत रक्षा अधिनियम, 1962 के तहत बनाए गए नियमों में भारत सरकार ने पाकिस्तानी राष्ट्रीयता लेने वालों की संपत्तियों और कंपनियों को अपने कब्जे में ले लिया था.</p>
<p style="text-align: justify;">1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद चीन जाने वालों की छोड़ी गई संपत्ति के साथ भी यही किया गया था. 10 जनवरी, 1966 की ताशकंद घोषणा में एक खंड शामिल था. इसमें कहा गया था कि भारत और पाकिस्तान दोनों पक्ष बंटवारे के बाद एक-दूसरे के लिए गए साजो सामान और संपत्ति की वापसी पर चर्चा करेंगे.</p>
<p style="text-align: justify;">हालांकि, पाकिस्तान सरकार ने अपने देश में ऐसी सभी संपत्तियों का निपटारा 1971 में ही कर दिया था. वर्ष 1962 के रक्षा अधिनियम के अनुसार सरकार को ऐसी समस्त शत्रु संपत्तियों को जब्त करने का अधिकार है. </p>
<p style="text-align: justify;"><strong> 1968 में शत्रु संपत्ति अधिनियम</strong></p>
<p style="text-align: justify;">साल 1965 भारत- पाकिस्तान की जंग के बाद 1968 में शत्रु संपत्ति (संरक्षण एवं पंजीकरण) अधिनियम लाया गया. भारत रक्षा अधिनियम, 1962 के बाद आए इस संशोधित कानून में ‘शत्रु’ शब्द की परिभाषा बदल दी गई. पहले अधिनियम में शत्रु शब्द में भारतीय नागरिकों को शामिल नहीं किया गया था. लेकिन 1968 के शत्रु संपत्ति अधिनियम में भारतीय नागरिक भी इसमें शामिल कर लिये गए.</p>
<p style="text-align: justify;">इसका मतलब अगर किसी भारतीय नागरिक के परिवार वाले कई साल पहले पाकिस्तान में जाकर वहीं रहने लगें हों तो ये भारत में अपनी संपत्ति का हक खो देगें और ये संपत्ति दुश्मन की संपत्ति मानी जाएगी, जिसे जब्त कर लिया जाएगा. इस एक्ट के तहत शत्रु संपत्ति की देखभाल के लिए भारत सरकार संरक्षक (कस्टोडियन) की नियुक्त करती है और ये लगातार उसी के हवाले रहती हैं. देश के कई राज्यों में फैली शत्रु संपत्तियों पर कस्टोडियन के जरिए केंद्र सरकार का कब्जा है. कुछ चल संपत्तियों को भी शत्रु संपत्तियों की श्रेणी में रखा गया है.</p>
<p style="text-align: justify;">केंद्र सरकार ने इसके लिये कस्टोडियन ऑफ एनिमी प्रॉपर्टी विभाग बनाया है. इस विभाग को शत्रु संपत्तियों को अधिग्रहित करने का हक है. इसके तहत ज़मीन, मकान, सोना, गहने, कंपनियों के शेयर और दुश्मन देश के नागरिकों की किसी भी दूसरी संपत्ति को भारत सरकार अपने अधिकार में ले सकती है. गौरतलब है कि पहले और दूसरे विश्व युद्ध के दौरान अमेरिका और ब्रिटेन ने जर्मनी के नागरिकों की जायदाद को इसी आधार पर अपने नियंत्रण में लिया था.</p>
<p style="text-align: justify;"><strong> 2017 का शत्रु संपत्ति (संशोधन और मान्यता) विधेयक</strong></p>
<p style="text-align: justify;">भारत की संसद ने 2017 में शत्रु संपत्ति (संशोधन और मान्यता) विधेयक, 2016 पारित किया. इसके तहत शत्रु संपत्ति अधिनियम, 1968 और सार्वजनिक परिसर (अनधिकृत कब्जाधारियों का निष्कासन) अधिनियम, 1971 में संशोधन किया गया. संशोधित अधिनियम 2016 में "दुश्मन आश्रित" और "दुश्मन फर्म" शब्द की परिभाषा को कानूनी उत्तराधिकारी और दुश्मन के उत्तराधिकारी को शामिल करने के लिए बढ़ाया गया चाहे वह भारत का नागरिक हो या किसी ऐसे देश का नागरिक हो जो दुश्मन नहीं है.</p>
<p style="text-align: justify;">शत्रु फर्म की उत्तराधिकारी फर्म चाहे उसके सदस्यों या भागीदारों की राष्ट्रीयता कुछ भी हो वो सब शत्रु संपत्ति के दायरे में आ गए. इसका मतलब ये हुआ कि शत्रु संपत्ति अभिरक्षक (कस्टोडियन) के हवाले ही रहेगी. फिर भले ही शत्रु या शत्रु का आश्रित या शत्रु फर्म शत्रु की मौत होने, कारोबार बंद करने, समेटने या फिर राष्ट्रीयता में बदलाव करने या फिर उसका कानूनी उत्तराधिकारी भारत या किसी ऐसे देश का नागरिक हो जो भारत का दुश्मन नहीं है.</p>
<p style="text-align: justify;">इसके तहत केंद्र सरकार की पहले ही मंजूरी लेकर कस्टोडियन अधिनियम के प्रावधानों के मुताबिक अपने पास मौजूद शत्रु संपत्तियों का निपटारा कर सकता है. सरकार इसके लिए कस्टोडियन को निर्देश भी जारी कर सकती है.</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>क्यों हुए संशोधन</strong></p>
<p style="text-align: justify;">शत्रु संपत्ति कानून 1968 में बनाया गया था तब चीन से युद्ध के 6 साल और पाकिस्तान से युद्ध के 3 साल पूरे हो चुके थे. कानून बनने के बाद भारत से चीन या पाकिस्तान पलायन करने वाले लोगों को ‘शत्रु देश’ का नागरिक मान लिया गया और सरकार को उनकी संपत्ति जब्त करके उस पर कस्टोडियन यानी संरक्षक नियुक्त करने का हक मिल गया. </p>
<p style="text-align: justify;">इन संपत्तियों से जुड़े सबसे ज़्यादा मामले उन लोगों के हैं, जो बंटवारे के वक्त या फिर उसके बाद पाकिस्तान में बस गए. ऐसे कई परिवारों के वारिसों ने भारत में मौजूद अपनी पारिवारिक संपत्ति पर दावा पेश किया था. कई ऐसे परिवार भी हैं, जिनमें मुखिया तो पाकिस्तान चला गया, लेकिन उसकी पत्नी और बच्चे भारत में ही रह गए. ऐसे लोग अपने दावों में कहते हैं कि भारतीय नागरिक होने के कारण पैतृक संपत्ति पर उनका बुनियादी हक है.</p>
<p style="text-align: justify;">संसद में 2017 में शत्रु संपत्ति (संशोधन और मान्यता) विधेयक को लेकर कहा गया, “हाल ही में अलग-अलग अदालतों ने अलग फैसले दिए हैं, जिन्होंने शत्रु संपत्ति अधिनियम, 1968 के तहत दी गई संरक्षक और भारत सरकार की शक्तियों पर प्रतिकूल असर डाला है. अलग-अलग अदालतों की इस तरह की व्याख्या, शत्रु संपत्ति अधिनियम, 1968 के तहत संरक्षक को अपने कामों को करने में मुश्किल हो रही है.”</p>
<p style="text-align: justify;">इस तरह के दावों को खत्म करने के लिए सरकार ने शत्रु संपत्ति कानून में संशोधन किए. इन संशोधनों ने कानूनी उत्तराधिकारियों को शत्रु संपत्ति पर किसी भी तरह का हक खत्म कर दिया. इन संशोधनों का असली मकसद इस संबंध में अदालतों के फैसले के असर को नकारना था. </p>
<p style="text-align: justify;"><strong>महमूदाबाद की संपत्ति पर कोर्ट का फैसला</strong></p>
<p style="text-align: justify;">भारत सरकार के 1968 में शत्रु संपत्ति अधिनियम लागू होने के बाद सबसे नुकसान महमूदाबाद के राज परिवार को हुआ था. इस अधिनियम के लागू होने के बाद राजा की संपत्ति को शत्रु संपत्ति घोषित कर दिया गया था. महमूदाबाद के राजा अमीर अहमद खान के पास हजरतगंज, सीतापुर और नैनीताल में कई बड़ी संपत्तियां थीं. राजा बंटवारे के बाद इराक चले गए और लंदन में बसने से पहले कुछ साल तक वहां रहे. हालांकि, उनकी बीवी कनीज आबिद और बेटा मोहम्मद आमिर मोहम्मद खान भारतीय नागरिकों के तौर पर भारत में पीछे रह गए और वो स्थानीय राजनीति में सक्रिय थे.</p>
<p style="text-align: justify;">राजा की मौत के बाद उनके बेटे ने संपत्ति पर दावा ठोक दिया. 30 साल से अधिक वक्त तक चली कानूनी लड़ाई के बाद, 21 अक्टूबर, 2005 को न्यायमूर्ति अशोक भान और न्यायमूर्ति अल्तमस कबीर की एक शीर्ष अदालत की खंडपीठ ने बेटे मोहम्मद आमिर मोहम्मद खान के पक्ष में फैसला सुनाया. इस फैसले के आते है ही देश भर की अदालतों में इस तरह की दलीलों की जैसे बाढ़ आ गई. इन दलीलों में पाकिस्तान चले गए लोगों के वास्तविक या कथित रिश्तेदारों ने उपहार में मिली अचल संपत्ति के दस्तावेजों से दावा किया कि वे शत्रु संपत्तियों के असली मालिक थे.</p>
<p style="text-align: justify;">तत्कालीन यूपीए सरकार ने 2 जुलाई, 2010 को एक अध्यादेश जारी किया, जिसने अदालतों को सरकार को कस्टोडियन से शत्रु संपत्तियों को लेने का आदेश देने से रोक दिया. इस प्रकार 2005 के सुप्रीम कोर्ट के आदेश को बेअसर कर दिया गया और कस्टोडियन ने फिर से राजा की संपत्तियों पर कब्जा कर लिया.</p>
<p style="text-align: justify;">लोकसभा में 22 जुलाई, 2010 को एक विधेयक पेश किया गया था और बाद में, एक संशोधित विधेयक 15 नवंबर, 2010 को पेश किया गया था. इसके बाद इस विधेयक को स्थायी समिति के पास भेज दिया गया था. हालांकि उक्त विधेयक 15 वीं लोकसभा की अवधि के दौरान पारित नहीं हो सका और यह लैप्स हो गया. 7 जनवरी, 2016 को, भारत के राष्ट्रपति ने शत्रु संपत्ति (संशोधन और विधिमान्यकरण) अध्यादेश, 2016 का एलान किया. इसकी जगह 2017 में कानून बनने वाले विधेयक ने ले ली थी. </p>
<p style="text-align: justify;">संसद तथा प्रवर समिति में लंबे विचार-विमर्श के बाद शत्रु संपत्ति (संशोधन एवं विधिमान्यकरण) अधिनियम, 2017 बनाया गया. दरअसल राजनीतिक मंजूरी न होने से लगभग 50 वर्ष पुराने इस कानून में संशोधन से पहले 6 बार अध्यादेश जारी किए गए थे. इस संशोधित कानून ने शत्रु संपत्ति (संरक्षण एवं पंजीकरण) अधिनियम, 1968 की जगह ली.</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>एक लाख करोड़ की हैं शत्रु संपत्तियां</strong></p>
<p style="text-align: justify;">दरअसल देश में शत्रु संपत्ति के दायरे में आने वाली 16000 संपत्तियां हैं. इनमें से 9,400 अधिक के शत्रु संपत्ति होने का ऐलान कर दिया गया है. साल 2020 में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की अध्यक्षता में मंत्रियों का एक समूह ने 9,400 अधिक शत्रु संपत्तियों के निपटाने की निगरानी का फैसला लिया गया था. इस संपत्ति का अनुमान सरकार ने लगभग 1 लाख करोड़ रुपये लगाया है.</p>
<p style="text-align: justify;">शत्रु संपत्ति अधिनियम के तहत भारत में शत्रु संपत्ति के संरक्षक में आने वाली अचल शत्रु संपत्तियों के निपटारे के लिए वरिष्ठ अधिकारियों की अध्यक्षता में दो समितियां गठित करने का फैसला भी लिया गया था. उस वक्त पूर्व गृह राज्य मंत्री हंसराज अहीर ने 2 जनवरी, 2018 को लोकसभा में जानकारी दी थी कि पाकिस्तानी नागरिकों की कुल 9,280 और चीनी नागरिकों की 126 शत्रु संपत्तियों पीछे छोड़ी गई हैं. सरकार इन संपत्तियों की कीमत करीब एक लाख करोड़ रुपये आंकती है.</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>शत्रु संपत्ति में यूपी अव्वल</strong></p>
<p style="text-align: justify;">देश के 21 सूबों सहित दो केंद्रशासित प्रदेशों में मिलाकर 12615 संपत्तियों की पहचान शत्रु संपत्ति के तौर पर की गई है. ऐसे में कई शत्रु संपत्तियां की पहचान कर ली गई है तो कई संपत्तियां कब्जे की वजह से पहचानी नहीं जा सकी हैं.</p>
<table style="border-collapse: collapse; width: 100%;" border="1">
<tbody>
<tr>
<td style="width: 33.3333%;">राज्य </td>
<td style="width: 33.3333%;">शत्रु संपत्तियां</td>
<td style="width: 33.3333%;">पहचानी गई शत्रु संपत्तियां</td>
</tr>
<tr>
<td style="width: 33.3333%;">उत्तर प्रदेश </td>
<td style="width: 33.3333%;">6255</td>
<td style="width: 33.3333%;">3797</td>
</tr>
<tr>
<td style="width: 33.3333%;">पश्चिम बंगाल</td>
<td style="width: 33.3333%;">4088</td>
<td style="width: 33.3333%;">810</td>
</tr>
<tr>
<td style="width: 33.3333%;">दिल्ली</td>
<td style="width: 33.3333%;">659</td>
<td style="width: 33.3333%;"> </td>
</tr>
<tr>
<td style="width: 33.3333%;">महाराष्ट्र</td>
<td style="width: 33.3333%;">211</td>
<td style="width: 33.3333%;"> </td>
</tr>
<tr>
<td style="width: 33.3333%;">गुजरात</td>
<td style="width: 33.3333%;">151</td>
<td style="width: 33.3333%;"> </td>
</tr>
<tr>
<td style="width: 33.3333%;">हरियाणा</td>
<td style="width: 33.3333%;">71</td>
<td style="width: 33.3333%;"> </td>
</tr>
<tr>
<td style="width: 33.3333%;">उत्तराखंड</td>
<td style="width: 33.3333%;">69</td>
<td style="width: 33.3333%;"> </td>
</tr>
</tbody>
</table>
<p style="text-align: justify;"><strong>कैसे खोजी जाएंगी शत्रु संपत्तियां</strong></p>
<p style="text-align: justify;">केंद्रीय गृह मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक देश की अधिकतर शत्रु संपत्तियों पर अवैध कब्जे हैं. इनकी पहचान करने के लिए सरकार डिफरेंशियल ग्लोबल पोजीशनिंग सिस्टम (डीजीपीएस) का सहारा लेगी. ये जीपीएस से भी बेहतरीन तकनीक है. इसके लिए भारत में दिसंबर से राष्ट्रीय सर्वे की बात कही गई थी. सरकार इन शत्रु संपत्तियों की पहचान करने के बाद कब्जे वाली शत्रु संपत्तियों को छुड़ाकर मौजूदा लागत के मुताबिक उनकी नीलामी की तैयारी में है. </p>