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मुजफ्फरनगर सीटः क्या 2022 के झटके से उबर पाएगी BJP, संजीव कुमार बालियान लगा पाएंगे जीत की हैट्रिक? | Muzaffarnagar lok sabha constituency Profile BJP opposition alliance india BSP elections 2024

मुजफ्फरनगर सीटः क्या 2022 के झटके से उबर पाएगी BJP, संजीव कुमार बालियान लगा पाएंगे जीत की हैट्रिक?

Muzaffarnagar Lok Sabha Seat

उत्तर प्रदेश की सियासत में मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट की अपनी ही पहचान है. पश्चिमी यूपी की इस सीट को जाट बेल्ट माना जाता है. 2013 के दंगों की वजह से मुजफ्फरनगर देशभर में चर्चा का विषय बन गया था. फिलहाल यहां पर शांति है. भारतीय जनता पार्टी केंद्र में नरेंद्र मोदी के आने से बाद से यहां पर अजेय बनी हुई है और अब उसकी नजर चुनावी जीत की हैट्रिक पर लगी है. 2019 के चुनाव में बीजेपी के संजीव कुमार बालियान ने प्रदेश के कद्दावर नेता अजित सिंह को हराकर इस सीट पर कब्जा जमाया था. बीजेपी ने एक बार फिर संजीव कुमार बालियान को मैदान में उतारा है तो INDIA गठबंधन की ओर से हरेंद्र सिंह मलिक को मौका दिया गया है.

मुजफ्फरनगर संसदीय सीट पर भले ही बीजेपी का कब्जा हो, लेकिन इससे जुड़ी 5 विधानसभा सीटों पर किसी एक दल का दबदबा नहीं दिख रहा है. 2022 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को झटका लगा था और यहां की 5 सीटों में से उसे महज एक सीट पर ही जीत मिल सकी थी, जबकि राष्ट्रीय लोक दल और समाजवादी पार्टी को 2-2 सीटों पर जीत मिली थी. चुनाव में राष्ट्रीय लोक दल और समाजवादी पार्टी के बीच चुनावी गठबंधन था और इसने यहां पर बाजी मार ली थी.

2019 के चुनाव में क्या हुआ था

मुजफ्फरनगर विधानसभा सीट पर बीजेपी को जीत मिली थी तो बुढ़ाना, चरथावल, खतौली, और सरधाना सीट पर सपा-आरएलडी के खाते में जीत गई. ऐसे में कहा जा सकता है कि इस बार जब चंद महीनों में लोकसभा चुनाव होंगे तो मुजफ्फरनगर सीट पर चुनाव कांटेदार हो सकता है. बीजेपी के विजयी रथ को रोकने के लिए विपक्षी दलों ने INDIA गठबंधन बनाया है, हालांकि इनके बीच सीटों के तालमेल को लेकर मामला फंसा हुआ है.

साल 2019 के लोकसभा चुनाव की बात करें तो यहां पर चुनाव बेहद कांटेदार रहा था और अंत तक हार-जीत तय नहीं हो सकी थी. बीजेपी की ओर से संजीव कुमार बालियान ने राष्ट्रीय लोक दल के अध्यक्ष और उम्मीदवार अजित सिंह को हराया था. संजीव बालियान को चुनाव में 573,780 वोट मिले तो अजित सिंह के खाते में 567,254 वोट आए. बालियान ने महज 6,526 मतों के अंतर से चुनाव में जीत हासिल की थी.

तब के चुनाव में वोटर्स की संख्या पर नजर डालें तो यहां पर कुल 16,47,368 वोटर्स थे जिसमें पुरुष वोटर्स की संख्या 8,97,618 थी तो महिला वोटर्स की संख्या 7,49,634 थी. इनमें से कुल 11,60,071 (70.7%) वोटर्स ने वोट डाले जिसमें 11,54,961 (70.1%) वोट वैध माने गए. चुनाव में 5,110 वोट नोटा को पड़े थे.

मुजफ्फरनगर संसदीय सीट का इतिहास

मुजफ्फरनगर संसदीय सीट के राजनीतिक इतिहास की बात करें तो यहां पर बीजेपी 2014 से लगातार चुनाव जीत रही है. 1990 के बाद के चुनाव को देखें तो 1991 से लेकर अब तक 8 लोकसभा चुनाव में मुजफ्फरनगर सीट से सिर्फ 2 नेताओं को लगातार 2 बार जीत मिली है. अब तक के संसदीय इतिहास में कोई भी जीत की हैट्रिक नहीं लगा सका है. 1989 के चुनाव में जनता दल के टिकट पर मुफ्ती मोहम्मद सईद चुनाव जीते थे.

1991 से लेकर 1998 तक बीजेपी ने लगातार जीत की हैट्रिक लगाई थी. 1991 में बीजेपी के नरेश कुमार बालियान जीते थे तो 1996 और 1998 में सोहनवीर सिंह के खाते में जीत गई थी. कांग्रेस को आखिरी बार 1999 में जीत मिली थी. फिर 2004 में समाजवादी पार्टी के मुनव्वर हसन विजयी हुए थे. 2009 में यह सीट बसपा के कादिर खान ने झटक ली थी. फिर 2014 से केंद्रीय मंत्री संजीव कुमार बालियान चुनाव जीत रहे हैं.

मुजफ्फरनगर सीट का जातीय समीकरण

2011 की जनगणना के मुताबिक मुजफ्फरनगर जिले की आबादी को देखें तो यहां की कुल 4,143,512 आबादी थी जिसमें पुरुष लोगों की संख्या 2,193,434 थी तो महिलाओं की संख्या 1,950,078 थी. जिसमें हिंदू आबादी करीब 2,382,914 यानी 57.51% थी जबकि मुसलमानों की आबादी 1,711,453 यानी 41.30% थी. ऐसे में यहां पर मुस्लिम वोटर्स की भूमिका चुनाव में अहम होती है.

मुजफ्फरनगर को जाटलैंड के नाम से जाना जाता है. यहां करीब 42 फीसदी सवर्ण कैटेगरी के वोटर्स हैं, जबकि 20 फीसदी मुस्लिम और 12 फीसदी जाट वोटर्स हैं. इनके अलावा 18 फीसदी एससी और एसटी वोटर्स है जबकि 8 फीसदी अन्य जातियों के वोटर्स यहां रहते हैं.

मुजफ्फरनगर के इतिहास में क्या खास

जहां तक मुजफ्फरनगर के इतिहास की बात है तो राजस्व रिकॉर्ड के पन्नों में सरवट गांव को परगना के रूप में जाना जाता था, फिर मुगल बादशाह शाहजहां ने अपने एक सरदार सय्यैद मुजफ्फर खान को इसे जागीर के रूप में दे दिया. उसने 1633 में खेरा और सूज्डू को मिलाकर मुजफ्फरनगर शहर की स्थापना की थी. बाद में उनके पुत्र मुनवर लाशकर ने उनके सपनों को पूरा करते हुए शहर का नाम पिता मुजफ्फर खान के नाम पर रखा.

ब्रिटिश राज के दौरान 1901 में यह आगरा और अवध के संयुक्त प्रांत में मेरठ डिवीजन का जिला हुआ करता था. फिलहाल यह सहारनपुर डिवीजन का हिस्सा है. इस क्षेत्र को ‘भारत का चीनी बाउल’ भी कहा जाता है. यहां की अर्थव्यवस्था खासतौर पर कृषि और गन्ना, कागज और इस्पात उद्योगों पर आधारित है. पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री लियाकत अली खान का नाता मुजफ्फरनगर से था. इनके अलावा पं सुंदर लाल, लाला हरदयाल और खतौली के शांति नारायण देश की आजादी में शामिल होने वाले बड़े नेताओं में गिने जाते थे.

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