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निठारी कांड: सेक्टर 31 की D 5 कोठी, खौफ के खूनी पंजों के निशान जहां आज भी हैं | up noida nithari serial killings case allahabad high court decision surendra koli and moninder singh pandher stwas

निठारी कांड: सेक्टर-31 की D-5 कोठी, खौफ के खूनी पंजों के निशान जहां आज भी हैं

निठारी कांड पर इलाहाबाद हाईकोर्ट का आया फैसला.

दिसंबर का महीना था और साल था 2006. निठारी उस समय तक की मेरे कैरियर की सबसे बड़ी स्टोरी थी. नोएडा के सेक्टर-31 की D-5 कोठी उस समय मेरे घर से ज्यादा दूर नहीं थी. सैकड़ों बार मेरा उसके सामने से निकलना हुआ होगा, लेकिन निठारी कांड के बाद जब भी वहां से गुजरना होता, एक अलग सी फीलिंग आती. जहन में अल्फ्रेड हिचकॉक की फिल्म ‘साइको’ चलने लगती. सेक्टर-31 का डी-फाइव हॉरर हाउस बन गया था.

निठारी कांड हुआ नोएडा में था, लेकिन पूरे देश में हर कहीं इसकी चर्चा थी. मेरे छह साल के कैरियर में पहली बार ऐसा हुआ, जब निठारी पर मेरी रिपोर्टिंग टीवी पर देखकर मेरे रिश्तेदार अलग से फोन करके मुझसे इस घटना की और डीटेल जानना चाहते थे. निठारी में नौकर-मालिक की जोड़ी ने जो किया, वो किसी कल्पना से परे था. हम रिपोर्टरों की जमात के कई सारे लोगों को पहली बार पता चला था कि Cannibalism (एक आदमी का दूसरे आदमी के शरीर के अंगों को खाना), Necrophilia (लाशों के साथ संबंध बनाना) जैसी मानसिक विकृतियां अब भी समाज में होती हैं.

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नोएडा उन दिनों नाम मात्र के ट्रैफिक वाला खूबसूरत शहर हुआ करता था. खूबसूरत आज भी है, मगर जाम की बीमारी अब यहां भी पहुंच गई है. तो नोएडा शहर भले ही खूबसूरत इमारतों, मकानों और पार्कों से भरा हो, लेकिन गरीबों की झुग्गी-झोपड़ी भी यहां भरपूर थीं. नोएडा के पॉश इलाके सेक्टर-31 में भी एक ओर ऐसी झुग्गी-झोपड़ियां थीं, जहां मेड, ड्राइवर, प्लंबर, कारपेंटर, मिस्त्री-मजदूर की जमात रहती थी.

जब निठारी गांव से अचानक गायब होने लगीं बच्चियां

साल 2004 से निठारी गांव में रहने वाले गरीबों की बच्चियां अचानक गायब होने लगीं. परेशान मां-बाप पुलिस के पास जाते तो जानते हैं नोएडा पुलिस उन्हें क्या कहती? पुलिस वाले उन्हें डांटते हुए बोलते कि “अरे किसी के साथ भाग गई होगी, लौट आएगी अपने आप”. ये हाल तब था, जब निठारी से गायब हुई बच्चियों की उम्र 8, 9, 10, 12, 13 और 14 साल थी. कुछ छोटे लड़के भी गायब हुए.

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निठारी से लड़कियां गायब होती रहीं, पर वो गरीब घरों से थीं. शायद इसीलिए पुलिस वाले उनके परिजनों को टरकाते रहे, डराकर थाने से भगाते रहे. स्थानीय लोगों ने मांग की कि पुलिस निठारी में चेक पोस्ट लगा दे, पर ये नहीं हुआ. वहीं जब नवंबर 2006 को नोएडा में एडोब के सीईओ के 6 साल के बेटे का अपहरण हुआ तो नोएडा से लेकर लखनऊ तक पुलिस एक्टिव हो गई थी. पुलिस ने नोएडा के सबसे पॉश सेक्टर 15-A में पीड़ित के घर के बाहर और सेक्टर 15-A के गेट पर भी चेक पोस्ट बना दी थी. यूपी एसटीएफ और नोएडा पुलिस पांच दिन में बच्चे को अपहरणकर्ताओं के चंगुल से छुड़ाकर ले आई थी.

कैसे वारदात की जगह पहुंच पाई थी नोएडा पुलिस?

हालांकि निठारी में डेढ़-दो साल से गरीबों की बच्चियां गायब हो रही थीं. 2006 के दिसंबर में एक कॉल गर्ल की तलाश करती पुलिस D-5 कोठी पहुंची तो वहां के नाले से 19-20 बच्चों-महिलाओं की हड्डियां-कंकाल मिले. पुलिस की जांच में आया कि D-5 के मालिक मनिंदर सिंह पढेंर और उसका नौकर सुरेंद्र कोली इन सबकी हत्या के पीछे है. जांच में निकला कि कोली बच्चों को टॉफी का लालच देकर डी-5 में बुलाया करता था.

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आरोप ये भी थे कि मालिक और नौकर बच्चों, महिलाओं का रेप-मर्डर कर उनके अंग निकालकर बेच देते थे. ये मामला करीब एक महीने तक टीवी पर दिन-रात चला. हम नॉन-स्टॉप कवरेज कर रहे थे और लोग टीवी से चिपक कर कोली और उसके मालिक की रूह कंपा देने वाली कहानियां सुन रहे थे. उस समय जैसी कवरेज थी, उसे देखकर कोई नहीं सोच सकता था कि 17 साल बाद एक दिन ऐसा आएगा, जब ये खबर आएगी कि डासना जेल में बंद मनिंदर सिंह पंढेर कोर्ट से बरी होने के बाद किसी भी समय जेल से बाहर आ जाएगा.

आखिर कैसे मिली इलाहाबाद हाई कोर्ट से राहत?

माना जा रहा है कि सुरेंदर कोली की रिहाई में भी ज्यादा देर नहीं होगी. इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 14 में से 12 मामलों में दोनों को मिली फांसी की सजा को रद्द कर दिया है. इन्हें गाजियाबाद की सीबीआई कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई थी. हाईकोर्ट में मामले की 134 दिनों तक चली सुनवाई के दौरान मुख्य बात निकल कर आई कि इन सभी मामलों में कोई चश्मदीद गवाह नहीं था. ऐसे में हाईकोर्ट ने संदेह का लाभ देते हुए इन दोनों को बरी किया है.

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