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कैराना सीटः मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र में बीजेपी को फिर मिलेगी जीत, या फिर SP कांग्रेस रोकेगी रास्ता? | Kairana lok sabha constituency Profile BJP opposition alliance india BSP elections 2024

कभी हिंदुओं के पलायन की वजह से चर्चा में आया कैराना शहर की राजनीतिक फिजा एकदम जुदा है. उत्तर प्रदेश में सालों तक राज करने वाली कांग्रेस के लिए यह संसदीय सीट लंबे समय तक उसके कब्जे में कभी नहीं रह सकी. हाल यह है कि कांग्रेस को कैराना सीट पर फिर से जीत का पिछले 40 सालों से इंतजार है. उतार-चढ़ाव से भरे इस सीट पर कोई भी दल पक्के तौर पर दावा नहीं कर सकता कि यह क्षेत्र उसका गढ़ है. 2019 से फिलहाल भारतीय जनता पार्टी का कब्जा है. लेकिन पार्टी को 2018 के उपचुनाव में शिकस्त का सामना करना पड़ा था. बीजेपी ने प्रदीप कुमार चौधरी को यहां से मैदान में उतारा है, जबकि विपक्षी दलों के गठबंधन INDIA ने इकरा हसन को टिकट दिया है.

कैराना शहर उत्तर प्रदेश के शामली जिले में स्थित है. इस संसदीय सीट के तहत 5 विधानसभा सीटें आती हैं, जिसमें 2 सीटें तो सहारनपुर जिले में पड़ती हैं तो 3 सीटें शामली जिले के तहत आती हैं. 2019 के आम चुनाव के 3 साल बाद 2022 में विधानसभा कराए गए जिसमें नकुर और गंगोह सीट पर बीजेपी का कब्जा हुआ तो कैराना विधानसभा सीट समाजवादी पार्टी के हिस्से में चली गई. शेष 2 अन्य सीटों थाना भवन और शामली सीट पर राष्ट्रीय लोकदल (RLD) का कब्जा है.

कैसा रहा था पिछला चुनाव

पश्चिमी उत्तर प्रदेश की अहम सीटों में गिनी जाने वाली कैराना लोकसभा सीट पर इस बार भी कड़े चुनाव के आसार हैं. भारतीय जनता पार्टी की कोशिश जहां इस सीट पर जीत के सिलसिले को आगे ले जाने का है तो वहीं कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी जैसे दल बीजेपी की राह में रोड़ा बने हुए हैं. बीजेपी की लगातार तीसरी बार आम चुनाव में जीत की कोशिश को रोकने के लिए विपक्षी दलों ने INDIA नाम से गठबंधन बनाया है.

2019 के लोकसभा चुनाव की बात करें तो इस चुनाव में 13 उम्मीदवारों ने अपनी किस्मत आजमाई थी, लेकिन मुख्य मुकाबला भारतीय जनता पार्टी और समाजवादी पार्टी के बीच ही रहा था. बीजेपी के प्रदीप कुमार को चुनाव में 566,961 वोट मिले तो समाजवादी पार्टी की तबस्सुम बेगम के खाते में 474,801 वोट आए. कांग्रेस के हरेंद्र सिंह मलिक तीसरे स्थान पर रहे थे. मुस्लिम गढ़ वाली इस सीट पर बीजेपी के प्रदीप कुमार ने 92,160 (8.2%) मतों के अंतर से जीत हासिल की थी. इस चुनाव में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के बीच आपसी गठबंधन था और इस लिहाज से यहां से सपा ने अपना उम्मीदवार उतारा था.

कैराना संसदीय सीट का इतिहास

चुनाव के दौरान कैराना सीट पर तब कुल 15,99,120 वोटर्स थे जिसमें पुरुष वोटर्स की संख्या 8,68,259 थी तो महिला वोटर्स की संख्या 7,30,780. इसमें से कुल 11,24,047 (70.5%) वोटर्स ने वोट डाले. नोटा के पक्ष में 3,542 वोट डाले गए. जबकि एक साल पहले 2018 में यहां पर लोकसभा सांसद हुकुम सिंह के निधन के बाद उपचुनाव कराया गया. जिसमें हुकुम सिंह की बेटी मृगांका सिंह को बीजेपी ने अपना उम्मीदवार बनाया तो राष्ट्रीय लोकदल और गठबंधन की ओर से तबस्सुम हसन उम्मीदवार थी. तबस्सुम हसन ने आसान मुकाबले में उपचुनाव जीत लिया, लेकिन एक साल बाद चुनाव में उन्हें शिकस्त का सामना करना पड़ा था.

कैराना संसदीय सीट के राजनीतिक इतिहास देखें तो यह सीट 1962 में अस्तित्व में आई. कांग्रेस को यहां पर पिछले 4 दशक से अपनी पहली जीत का इंतजार है. कांग्रेस को आखिरी बार 1984 में कैराना से जीत मिली थी. तब अख्तर हसन विजयी हुए थे. 1991 से लेकर अब तक हुए 9 चुनाव में बीजेपी को 3 बार तो राष्ट्रीय लोक दल को भी 3 बार जीत मिली है. जनता दल, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी भी यहां से चुनाव जीत चुके हैं.

1991 से लेकर अब तक के चुनाव में तबस्सुम हसन ही वो नेता हैं जिन्हें कैराना सीट से 2 बार जीत मिली है जबकि अन्य नेता अपनी जीत रिपीट नहीं कर सके हैं. हालांकि तबस्सुम ने 2009 के चुनाव में बसपा के टिकट पर चुनाव जीता था, जबकि 2018 में वह राष्ट्रीय लोक दल के टिकट पर चुनाव जीता था. उनके पति मुनव्वर हसन भी यहां से लोकसभा चुनाव (1996) जीत चुके हैं. 2014 के चुनाव में मोदी लहर में हुकुम सिंह विजयी हुए थे. 1991 से लेकर अब तक हुए 9 चुनाव में 4 बार मुस्लिम प्रत्याशी को जीत मिली है.

क्या कहता है यहां का जातीय समीकरण

पहले लोकसभा चुनाव में जाट नेता यशपाल सिंह ने निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर जीत हासिल की थी. यह क्षेत्र मुस्लिम और जाट बाहुल्य क्षेत्र है. पश्चिमी यूपी की चर्चित कैराना सीट पर मुस्लिम वोटर्स निर्णायक की भूमिका में होते हैं. 2011 की जनगणना के मुताबिक, शामली जिले में कुल 1,273,578 वोटर्स हैं जिसमें 57.09% वोटर्स हिंदू हैं तो 41.73% आबादी मुसलमानों की हैं. इसमें कैराना में मुस्लिम लोगों की आबादी ज्यादा है और कुल जनसंख्या का 52.94% है तो 45.38% हिंदू बिरादरी के लोग रहते हैं. खास बात यह है कि यहां की साक्षरता दर 81.97% है.

कैराना प्रदेश के 80 संसदीय सीटों में से एक है. बताया जाता है कि इसका पुराना नाम कर्णपुरी हुआ करता था, लेकिन बाद में नाम बिगड़ता चला गया, पहले यह किराना हुआ और अब कैराना हो गया. मुजफ्फरनगर से करीब 50 किलोमीटर पश्चिम में पानीपत से सटा हुआ है. इस क्षेत्र को राष्ट्रीय लोक दल का गढ़ भी माना जाता है. 2013 में मुजफ्फरनगर में हुए दंगों का असर पश्चिमी यूपी के कई जिलों में हुआ था जिसमें शामली जिला भी शामिल था. हिंसक दंगों के बाद से मुजफ्फरनगर और शामली जिले ‘संवेदनशील’ माने गए थे.

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