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अल्पसंख्यक दर्जा रहेगा या नहीं? AMU पर सुप्रीम कोर्ट ने सुरक्षित रखा फैसला | Aligarh Muslim University minority status remain or not Supreme Court reserved its decision on AMU

अल्पसंख्यक दर्जा रहेगा या नहीं? AMU पर सुप्रीम कोर्ट ने सुरक्षित रखा फैसला

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय. (फाइल फोटो)

सुप्रीम कोर्ट ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) के अल्पसंख्यक दर्जे पर अपना फैसला सुरक्षित रखते हुए गुरुवार को कहा कि एएमयू अधिनियम में किया गया 1981 का संशोधन आधे-अधूरे मन से किया गया था और यह संस्थान की 1951 से पहले की स्थिति बहाल नहीं करता है. एएमयू अधिनियम में 1981 में किए गए संशोधन ने ही प्रभावी रूप से इसे अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा दिया था.

एएमयू अधिनियम, 1920 जहां अलीगढ़ में एक शिक्षण और आवासीय मुस्लिम विश्वविद्यालय को स्थापित करने की बात करता है, वहीं 1951 का संशोधन विश्वविद्यालय में मुस्लिम छात्रों के लिए अनिवार्य धार्मिक निर्देशों को खत्म कर देता है.

दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित

प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने आठ दिन तक सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया. इस संस्थान की स्थापना 1875 में सर सैयद अहमद खान के नेतृत्व में प्रमुख मुस्लिम समुदाय के सदस्यों द्वारा मुहम्मदन एंग्लो-ओरिएंटल कॉलेज के रूप में की गई थी. कई वर्षों के बाद 1920 में, यह ब्रिटिश शासनकाल के दौरान एक विश्वविद्यालय में तब्दील हो गया.

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आधे-अधूरे मन से किया गया काम

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने विभिन्न पक्षों की दलीलों पर सुनवाई पूरी करने के बाद कहा कि एक बात जो हमें चिंतित कर रही है वह यह है कि 1981 का संशोधन उस स्थिति को बहाल नहीं करता है जो 1951 से पहले थी. दूसरे शब्दों में, 1981 का संशोधन आधे-अधूरे मन से किया गया काम प्रतीत होता है.

प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि मैं समझ सकता हूं कि अगर 1981 के संशोधन में कहा गया था. ठीक है, हम मूल 1920 कानून पर वापस जा रहे हैं, इस (संस्थान) को पूर्ण अल्पसंख्यक दर्जा प्रदान करें. पीठ में न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला, न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता, न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा भी शामिल हैं.

कई दशकों से कानूनी दांव-पेंच में फंसा

एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे का मामला पिछले कई दशकों से कानूनी दांव-पेंच में फंसा हुआ है. सुप्रीम कोर्ट ने 12 फरवरी, 2019 को विवादास्पद मुद्दे को निर्णय के लिए सात न्यायाधीशों की पीठ के पास भेज दिया था. इसी तरह का एक संदर्भ 1981 में भी दिया गया था.

वर्ष 1967 में एस अजीज बाशा बनाम भारत संघ मामले में पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा था कि चूंकि एएमयू एक केंद्रीय विश्वविद्यालय है, इसलिए इसे अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना जा सकता। हालांकि, जब संसद ने 1981 में एएमयू (संशोधन) अधिनियम पारित किया तो इसे अपना अल्पसंख्यक दर्जा वापस मिल गया.

इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ अपील

बाद में, जनवरी 2006 में, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एएमयू (संशोधन) अधिनियम, 1981 के उस प्रावधान को रद्द कर दिया जिसके द्वारा विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक दर्जा दिया गया था. केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार ने 2006 के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ अपील दायर की. विश्वविद्यालय ने भी इसके खिलाफ अलग से याचिका दायर की. भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) सरकार ने 2016 में शीर्ष अदालत को बताया था कि वह पूर्ववर्ती संप्रग सरकार द्वारा दायर अपील वापस ले लेगी.

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