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मुरादाबाद लोकसभा सीटः क्या BJP को दूसरी बार यहां पर मिलेगी जीत, या फिर विपक्ष का चलेगा जादू | Moradabad lok sabha constituency Profile BJP opposition alliance india BSP elections 2024

पिछले साल 5 राज्यों में खत्म हुए विधानसभा चुनाव के बाद अब लोकसभा चुनाव की बारी है. सभी दल अपने-अपने स्तर पर चुनावी समीकरण सेट करने में लग गए हैं. उत्तर प्रदेश में भी हलचल बनी हुई है. प्रदेश में 80 लोकसभा सीटें हैं और यहां पर जीत हासिल करने वाला दल ही केंद्र की सत्ता पर मजबूत पकड़ बनाता है. उत्तर प्रदेश की मुरादाबाद सीट पर भी हलचल बनी हुई है. पीतल नगरी के नाम से मशहूर मुरादाबाद से कभी टीम इंडिया के पूर्व कप्तान मोहम्मद अजहरुद्दीन भी चुनाव जीत चुके हैं. फिलहाल पिछले चुनाव में समाजवादी पार्टी के एसटी हसन को जीत मिली थी. बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा था. ऐसे में इस बार कड़े मुकाबले के आसार हैं.

पश्चिम यूपी में पड़ने वाले मुरादाबाद जिले की अपनी खास विरासत रही है. साल 1600 में मुगल शासक शाहजहां के पुत्र मुराद ने इस शहर की स्थापना की थी और आगे चलकर यह शहर उन्हीं के नाम पर मुरादाबाद के रूप में जाना जाने लगा. मुरादाबाद राजधानी, नई दिल्ली से राम गंगा नदी के तट पर बसा है और यह करीब 167 किमी (104 मील) की दूरी पर स्थित है. 2019 के चुनाव में यहां पर बीजेपी को जोर का झटका लगा था और उसके उम्मीदवार तथा तत्कालीन सांसद कुंवर सर्वेश कुमार सिंह को करारी हार का सामना करना पड़ा था. 2022 के चुनाव में मुरादाबाद लोकसभा सीट के तहत आने वाली 6 विधानसभा सीटों में से 5 सीटों पर सपा का कब्जा है जबकि एक सीट बीजेपी के खाते में गई.

2019 के चुनाव में क्या रहा परिणाम

5 साल पहले हुए मुरादाबाद में हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी की चुनौती का सामना करने के लिए समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने चुनावी तालमेल सेट कर लिया था और इस वजह से यह सीट समाजवादी पार्टी के खाते में गई. सपा ने यहां से एसटी हसन को मौदान में उतारा. 2014 के चुनाव में एसटी हसन को हार मिली थी, लेकिन इस बार साझा उम्मीदवार होने का फायदा उन्हें मिला. हसन को चुनाव में 649,416 वोट मिले जबकि बीजेपी के कुंवर सर्वेश कुमार के खाते में 551,538 वोट आए. कांग्रेस के टिकट पर मैदान में उतरे इमान प्रतापगढ़ी को 60 हजार वोट भी नहीं मिले. उन्हें 59,198 वोट ही मिले.

एसटी हसन ने 97,878 (7.6%) मतों के अंतर से बीजेपी के उम्मीदवार को हरा दिया. तब के चुनाव में यहां पर कुल वोटर्स की संख्या 18,86,615 थी जिसमें पुरुष वोटर्स की संख्या 10,15,348 थी तो महिला वोटर्स की संख्या 8,71,168 थी. इसमें से कुल 12,82,206 (68.3%) वोटर्स ने वोट डाले. चुनाव में NOTA के पक्ष में 5,757 (0.3%) वोट पड़े थे.

संसदीय सीट का इतिहास, 11 बार जीते मुसलमान

मुरादाबाद संसदीय सीट के राजनीतिक इतिहास पर नजर डालें तो मुस्लिम बहुल सीट पर 11 बार मुस्लिम उम्मीदवारों को जीत मिली है तो 6 बार अन्य उम्मीदवारों के खाते में जीत गई है. यह प्रदेश की उन चंद सीटों में से एक है जहां पर कांग्रेस को पिछले 20 सालों में एक या दो बार जीत हासिल हुई है. फिलहाल आजादी के बाद पहली बार 1952 में इस सीट पर भी आम चुनाव कराया गया जिसमें कांग्रेस को जीत मिली. राम सरन ने लगातार 2 बार चुनाव जीता. 1962 में निर्दलीय प्रत्याशी सैयद मुजफ्फर हुसैन को जीत मिली. 1967 और 1971 के चुनाव में ये सीट भारतीय जनसंघ के खाते में चली गई. इसके बाद देश में लगी इमरजेंसी की वजह से कांग्रेस को खासा नुकसान हुआ. 1977 और 1980 में भी कांग्रेस को हार मिली.

हालांकि इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देश में हुए आम चुनाव में सहानूभूति लहर का फायदा कांग्रेस को मिला और मुरादाबाद सीट पर लंबे इंतजार के बाद कब्जा हो गया. 1989 और1991 में जनता दल के कब्जे में यह सीट रही. 90 के बाद की राजनीति में 1999 का चुनाव बेहद खास रहा क्योंकि कांग्रेस छोड़ने वाले जगदंबिका पाल ने अखिल भारतीय लोकतांत्रिक कांग्रेस की स्थापना की थी और यहां से पार्टी के उम्मीदवार चंद्र विजय सिंह को जीत मिली थी. 2004 के चुनाव में सपा को फिर से जीत मिली थी. 1996 और 1998 के चुनाव में भी सपा को जीत मिली थी.

पिछले कई चुनावों में हार के बाद कांग्रेस ने 2009 के चुनाव में भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान मोहम्मद अजहरुद्दीन पर दांव लगाया और वह पहली बार लोकसभा के लिए यहां से सांसद बने. उन्होंने बीजेपी के कुंवर सर्वेश कुमार सिंह को हराया था. हालांकि 2014 के चुनाव में देश में मोदी लहर का फायदा बीजेपी को मिला और मुरादाबाद सीट पर पहली बार कमल खिला. पिछले चुनाव में हारने वाले कुंवर सर्वेश कुमार सिंह ने इस बार जीत हासिल की और सपा के एसटी हसन को हरा दिया. लेकिन 2019 के चुनाव में इस मोदी लहर का फायदा बीजेपी को यहां पर नहीं दिखा और उसे सपा-बसपा गठबंधन के आगे हार का सामना करना पड़ा.

मुरादाबाद सीट का जातीय समीकरण

मुरादाबाद जिले के जातीय समीकरण को देखें तो 2011 की जनगणना के मुताबिक, जिले की कुल आबादी 4,772,006 थी जिसमें पुरुषों की संख्या 2,503,186 थी तो महिलाओं की संख्या 2,268,820 थी. धर्म के आधार पर देखें तो हिंदुओं की आबादी 52.14% थी मुस्लिम बिरादरी की संख्या 47.12% थी. 2011 की जनगणना में मुरादाबाद में प्रति हजार पुरुषों पर महिलाओं की संख्या 940 हो गई थी. संसदीय सीट के कई जगहों पर मुस्लिम बिरादरी बेहद अहम स्थिति में हैं. इनके अलावा अनुसूचित जाति (SC) के जाटव वोटर्स की संख्या करीब 1.80 लाख थी जबकि वाल्मीकि वोटर्स की संख्या करीब 43000 थी. इनके अलावा यादव बिरादरी के वोटर्स अहम भूमिका रखते हैं. 1.50 लाख ठाकुर वोटर्स, 1.49 लाख सैनी वोटर्स के अलावा करीब 74 हजार वैश्य, 71 हजार कश्यप और करीब 5 हजार जाट वोटर्स हैं. साथ ही प्रजापति, पाल, ब्राह्मण, पंजाबी और विश्नोई समाज के वोटर्स की भी अच्छी भूमिका रही है.

मुरादाबाद शहर पीतल के काम के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध है और इसकी अपनी खास पहचान भी है. यहां पर आधुनिक कारीगरों की ओर से तैयार किए गए आधुनिक, लुभावने, और कलात्मक पीतल के बर्तन, गहने और ट्राफियां मुख्य हैं. यहां से बने पीतल के बर्तन अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, जर्मनी और मध्य पूर्व एशिया जैसे देशों में निर्यात किए जाते हैं. मुस्लिम बहुल क्षेत्र में बीजेपी फिर से जीत हासिल करने की जुगत में लग गई है. इसलिए उसकी ओर से पसमांदा मुस्लिम का पहला सम्मेलन मुरादाबाद में ही आयोजित कराया गया था. अब देखना होगा कि समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव भी पीडीए (पिछड़ा, दलित और अनुसूचित जाति) के जवाब में बीजेपी किस तरह का प्रदर्शन करती है. सपा विपक्षी दलों के गठबंधन INDIA के साथ जुड़ी हुई है. ऐसे में यहां पर मुकाबला कांटे का होने वाला है.

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