Sharad Pawar 2015 Autobiography How It Will Become Headache For Congress Abpp

लोकसभा चुनाव नजदीक है और ऐसे में विपक्षी दल एकता की नींव रख भी नहीं पाए थे कि शरद पवार के एक बयान ने इस नींव की लकीर को मिटाने का काम कर दिया है. हाल ही में एनसीपी चीफ शरद पवार हिंडनबर्ग मामले में गौतम अडानी का समर्थन करते दिखे . जिससे विपक्ष तिलमिला गया. वहीं शरद ने अपनी किताब में जिस तरह अडानी का जिक्र किया है वो भी विपक्ष के लिए एक झटका है.
शरद ने अपनी किताब ‘लोक माझे सांगाती’ में अडानी की खूब तारीफ की है. दूसरी तरफ शरद पवार ने एक इंटरव्यू में कहा कि एक इंडस्ट्रियल ग्रुप को टारगेट किया गया. पवार ने ये भी कहा कि इस मामले में संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) की जांच की मांग व्यर्थ है.
शरद पवार का ये बयान ऐसे समय में आया जब सदन में 19 विपक्षी पार्टियां अडानी मुद्दे को जमकर उठा रही थी. इन तमाम विपक्षी पार्टियों की तरफ से मोदी सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप भी लगाए जा रहे थे.
इस समय एनसीपी विपक्ष की एक बड़ी पार्टी है. शरद पार्टी के बड़े नेता हैं. ऐसे में उनके इस बयान ने कई सवाल खड़े कर दिए . इसी क्रम में अडानी पर शरद की लिखी किताब भी एक सवाल बन कर उभरी है.
पुरानी है पवार और अडानी की दोस्ती
पवार की गौतम अडानी से दोस्ती कोई नई नहीं है. ये दोस्ती दो दशक पुरानी है. इसका जिक्र उन्होंने साल 2015 में मराठी भाषा में छपी अपनी आत्मकथा ‘लोक माझे सांगाती’ में भी किया है. शरद ने इस किताब में अडानी की खूब तारीफ की है. शरद पवार के बयान के बात ये किताब सियासी गलियारों में चर्चा का विषय बन गई है.
शरद ने अडानी को मेहनती साधारण, जमीन से जुड़ा’’ और बुनियादी ढांचा क्षेत्र में कुछ बड़ा करने की महत्वाकांक्षा रखने वाला व्यक्ति बताया है. पवार ने यह भी लिखा है कि उनके आग्रह पर ही अडानी ने थर्मल ऊर्जा क्षेत्र में कदम रखा.
शरद ने अपनी किताब में अडानी को कैसा बताया
शरद पवार ने अपनी किताब में अडानी के कोयला क्षेत्र में कदम रखने और अपने (पवार के) ही सुझाव पर कारोबारी के थर्मल एनर्जी क्षेत्र में उतरने की बात कही हैं. पवार उस समय केंद्रीय कृषि मंत्री थे.
शरद की किताब के मुताबिक अडानी को कोयला क्षेत्र में कदम रखने का सुझाव पवार ने ही दिया था. अडानी ने 3,000 मेगावाट का ताप ऊर्जा संयंत्र स्थापित किया. किताब में शरद ने याद किया कि कैसे उन्होंने अपने दशकों पुराने राजनीतिक करियर के दौरान महाराष्ट्र में विकास के लिए कई उद्योगपतियों के साथ करीबी ताल्लुकात बढ़ाए.
राकांपा प्रमुख शरद पवार ने कहा कि वह उद्योगपतियों के साथ नियमित संपर्क में रहते थे जो किसी भी दिन दोपहर दो बजे से शाम चार बजे के बीच पहले से समय लिये बगैर उनसे मिल सकते थे.
पवार और अडानी के अनसुने किस्सों का जिक्र
शरद पवार ने अपनी किताब में लिखा कि अडानी ने कैसे हीरा उद्योग में अपनी किस्मत आजमाने की कोशिश से पहले छोटे उद्यमों में हाथ आजमाया. पवार ने लिखा कि गौतम हीरा में अच्छी कमाई कर रहे थे लेकिन गौतम की दिलचस्पी बुनियादी बिजनेस में थी.
उस समय अडानी की दोस्ती गुजरात के मुख्यमंत्री चिमनभाई पटेल के साथ अच्छी थी. उन्होंने मुंद्रा में एक बंदरगाह के विकास का एक प्रस्ताव पेश किया था. बंदरगाह पाकिस्तान सीमा के करीब है और यह एक शुष्क जगह है. बकौल पवार अडानी ने विपरीत परिस्थितियों के बावजूद अडानी ने चुनौती स्वीकार की.
शरद के बयान से पहले ही तिलमलाई हुई है कांग्रेस
राकांपा प्रमुख शरद पवार के बयान पर पहले ही जम कर विवाद हो चुका है. शरद अपने बयान में एक इंडस्ट्रियल ग्रुप को टारगेट किये जाने को गलत बता चुके हैं. पवार इस मामले में संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) की जांच की मांग व्यर्थ बताई थी.
कांग्रेस की तरफ से जयराम रमेश ने बयान जारी करते हुए कहा कि एनसीपी का अपना कोई स्टैंड हो सकता है, लेकिन 19 विपक्षी पार्टियां ये मानती हैं कि अडानी मुद्दा गंभीर है.
मैं ये भी साफ करना चाहता हूं कि एनसीपी और दूसरे विपक्षी दल हमारे साथ ही खड़े हैं, हम सभी साथ मिलकर लोकतंत्र को बचाना चाहते हैं और बीजेपी की बंटवारे वाली राजनीति को हराना चाहते हैं.
जयराम रमेश ने भले ही ये बयान दे दिया हो , लेकिन कांग्रेस ये अच्छे से जानती है कि अडानी मुद्दे को राहुल गांधी ने उठाया है और ये मुद्दा कांग्रेस के काफी करीब है.
राहुल की सदस्यता जाने के बाद कांग्रेस को लगातार मिल रहा है सिरदर्द
लोकसभा चुनाव के नजदीक आते ही कांग्रेस का सिरदर्द भी बढ़ गया है. एक के बाद एक कई नेता कांग्रेस का साथ छोड़ चुके हैं. इसका ताजा उदाहरण वरिष्ठ नेता एके एंटनी के बेटे अनिल एंटनी के बीजेपी में शामिल होना है. इसके बाद आंध्र प्रदेश के पूर्व सीएम किरण रेड्डी ने भी सत्ताधारी दल की सदस्यता ग्रहण कर ली. पिछले 9 साल में 23 बड़े नेता कांग्रेस का दामन छोड़ चुके हैं.
इनमें जगदंबिका पाल, हिमंत बिस्वा सरमा, एसएस कृष्ण, शंकर सिंह वाघेला, एनडी तीवारी, कपिल सिब्बल, गुलाम नबी आजाद का नाम शामिल है.
शरद पवार की किताब में अडानी का जिक्र कांग्रेस के लिए कितना बड़ा झटका
शरद पवार विपक्षी एकता की अहम कड़ी हैं. महाराष्ट्र में दोनों पार्टियां साथ हैं , ऐसे में कांग्रेस जरूर चाहेगी कि शरद पवार उनके साथ आएं. लेकिन अडानी मुद्दे पर एनसीपी प्रमुख की किताब और उनके बयान से कांग्रेस को करारा झटका लगा है.
एक तरफ जहां राहुल गांधी अयोग्य ठहराए जा चुके हैं, उन्हें सहयोगी पार्टियों की जरूरत हैं. ऐसे समय में पवार का हालिया बयान और उनकी किताब ने सियासी गलियारों में हलचल पैदा कर दी है. महाराष्ट्र में अटकलें शुरू हो गई हैं कि एनसीपी प्रमुख आगे क्या करने वाले हैं.
शरद पवार की किताब में अडानी का जिक्र और अब उनके बयान से सियासी गलियारे में ये अटकलें भी लगने लगी हैं क्या ये भाजपा और राकांपा के एक साथ आने का पूर्व संकेत है.
1999 में भी यह पवार की तरफ से ऐसी ही एक टिप्पणी आई थी. उस दौरान कांग्रेस से अलग होकर एनसीपी बना रहे थे. एनसीपी ने 1999 में कांग्रेस के खिलाफ राज्य चुनाव लड़ा था, लेकिन उसी साल उसने कांग्रेस के साथ हाथ मिला लिया था. उसके बाद वह 15 साल तक उतार-चढ़ाव के दौर में कांग्रेस के साथ साझेदार बनी रही. पवार केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार में एक वरिष्ठ मंत्री थे.
2014 में मोदी लहर आई, केंद्र में भाजपा की सरकार बनने के बाद कुछ महीनों बाद एनसीपी ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के लिए कांग्रेस के साथ गठबंधन नहीं किया. इसमें दोनों पार्टियां अन्य दो मुख्य मोर्चों, शिवसेना और भाजपा की तरह अलग-अलग चुनाव लड़ रही थीं.
चुनावी नतीजों के बाद पवार ने सबको हैरान कर दिया, पवार ने भाजपा को बाहर से समर्थन दिया. जिससे देवेंद्र फडणवीस के महाराष्ट्र के पहले भाजपा मुख्यमंत्री बनने का रास्ता खुला. भाजपा तब बहुमत से 22 सीट दूर थी .
पांच साल बाद 2019 के विधानसभा चुनावों में भाजपा के बहुमत से बाहर हो गयी और पवार ने भाजपा की सहयोगी शिवसेना को लुभाना शुरू कर दिया. उस समय उद्धव ठाकरे की मुख्यमंत्री बनने की इच्छा को भाजपा ने ठुकरा दिया था. वजह पवार ही थे, जिन्होंने एमवीए सरकार बनाने के लिए शिवसेना, राकांपा और कांग्रेस के साथ गठबंधन किया था.
उस दौरान सभी विपक्षी पार्टियां पवार की भूमिका को लेकर ठीक-ठीक अंदाजा नहीं लगा पा रही थी. तब पवार के भतीजे अजित पवार ने आधी रात को फडणवीस के पक्ष में भाजपा-राकांपा गठबंधन में उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ली. एक या दो दिन बाद ही शरद पवार ने एनसीपी पर कब्जा कर लिया.
दिलचस्प बात यह है कि पवार ने कभी सोनिया गांधी की जगह कांग्रेस छोड़ दी थी. लेकिन अपने हित के लिए बाद में पवार सोनिया गांधी को पसंद भी करने लगे.
1999 में सोनिया गांधी के विदेशी मूल के मुद्दे पर कांग्रेस छोड़ दी थी. शरद ने तारिक अनवर और पीए संगमा के साथ के साथ मिलकर अपनी पार्टी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी बना ली थी. हांलाकि उसी साल शरद ने कांग्रेस की मदद से महाराष्ट्र में अपनी सरकार भी. बनाई थी
1978 में शरद पवार इंदिरा गांधी से भी बगावत कर चुके हैं तब शरद की उम्र 27 साल थी. समय-समय पर पवार और कांग्रेस के बीच संवादहीनता का पता भी चलता आया है.
इसका एक उदाहरण अहमद पटेल की मृत्यु के बाद का है. उस समय कांग्रेस के पास कोई वरिष्ठ नेता नहीं था. पार्टी के कुछ लोगों को उम्मीद थी कि खड़गे को कांग्रेस अध्यक्ष बनाया जाएगा. लेकिन कांग्रेस पवार को इसके लिए नहीं मना पाई.